मैं नहीं मानता कि रसोइए केवल अपने पाक कौशल के लिए ही जाने जाते हैं, वे उद्यमी भी हो सकते हैं। वे कवि भी हो सकते हैं और अच्छे पाठक भी। मैं एक शेफ और उद्यमी भी हूं। टीवी शो में जज से लेकर प्रस्तोता भी और खाली वक्त मिलने पर कविताएं भी लिखता हूं। कुछ लोग हमें एक बॉक्स में फिट कर देते हैं और हम भी उसमें फिट होने के लिए व्यक्तित्व के एक-दो पहलू को प्रदर्शित करते हुए बाकी संभावनाओं पर अंकुश लगाते रहते हैं। मुझे लगता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
जायके के शहर लखनऊ में पला-बढ़ा हूं। जब पहली बार पैरेंट्स से कहा कि मैं एक शेफ बनना चाहता हूं, तो जमींदार परिवार की नाराजगी जायज थी। मुझे तब तक गंभीरता से नहीं लिया गया जब तक मैंने लखनऊ के मशहूर बावर्ची टोला की एक गली में कबाब के उस्ताद मुनीर अहमद की बाकायदा शार्गिदी नहीं ले ली। आठ महीनों तक मेरा काम हर तरह के मसाले पीसने और लकड़ी के कोयले लगाने तक सीमित था। बाद में सब मान गए और इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट लखनऊ से निकलकर शेफ के रूप में मेरा कॅरियर शुरू हो गया।
आज युवा प्रतिभाओं पर भरोसा किया जाता है लेकिन उस समय एक्जीक्यूटिव शेफ जैसे पदों पर पहुंचते-पहुंचते आपकी उम्र ३५-३६ वर्ष हो जाती थी, हालांकि मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। 25 साल की उम्र आते-आते मैं कार्यकारी शेफ नियुक्त कर दिया गया। कई होटलों में रेस्तरां की सफल लॉन्चिंग और ऑपरेशन में लोग मेरा सहयोग लेने लगे। मैं ताज, रेडिसन, क्लेरियस के साथ काम करने लगा। यह मेरे लिए सामान्य हो गया था, इसलिए मैंने बोस्टन जाने का फैसला किया।
चुनौतियां से पार पाना
बोस्टन जाकर रेस्तरां ‘बंक’ खोला। शुरू में यह अच्छा चला, बाद में मंदी आ गई। यह बंद हो गया। मैं टूट गया, पर मैंने हार नहीं मानी और आगे बढऩे का रास्ता चुना। आज मेरे वहां कई रेस्तरां हैं।
नया ही करते रहना है
बोस्टन में सफलता की कहानी लिखने के बाद मैं भारत लौट आया। मैं सप्ताह में चार दिन काम करता हूं और बाकी समय कविताएं लिखता हूं और सपने देखता हूं।