मैनेजमेंट मंत्र

कभी करते थे फोटोकॉपी की दुकान पर काम, आज बॉलीवुड करता है सलाम, जाने कहानी

कुणाल वर्मा जयपुर आकर फोटोकॉपी की दुकान पर काम करने लगे, तब उन्हें दो हजार रुपए मिला करते थे, फिर ख्याल आया कि क्या मेरे सपने यहीं खत्म हो जाएंगे?

Mar 16, 2019 / 11:36 am

सुनील शर्मा

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‘हमारी अधूरी कहानी’ फिल्म के ‘हां हंसी बन गए’ सॉन्ग को लिखने वाले पिंकसिटी कुणाल वर्मा को अपना मुकाम बनाने के लिए जीवन में कई तरह के एग्जाम से गुजरना पड़ा है। फिल्म चीट इंडिया के म्यूजिक कंपोजर के साथ ही फिल्म के गाने ‘फिर मुलाकात’ और हालिया रिलीज लुका छिपी के ‘दुनिया’ से उनकी खास पहचान बन गई है। उनकी कहानी दूसरों से अलग थी। मुम्बई में अपनी अलग पहचान बनाने की राह आसान नहीं थी, लेकिन हर मोड़ से उन्होंने बहुत कुछ सिखाया और आगे बढऩे के लिए प्रेरित हुए।

उन्होंने कहा कि मेरा रुझान कंप्यूटर डिजाइन और टेक्निकल फील्ड की तरफ था। रींगस के पास श्रीमाधोपुर गांव छोडक़र जयपुर में शिफ्ट होना तय किया। कुणाल वर्मा जयपुर आकर फोटोकॉपी की दुकान पर काम करने लगे, तब उन्हें दो हजार रुपए मिला करते थे, फिर ख्याल आया कि क्या मेरे सपने यहीं खत्म हो जाएंगे? वो बताते हैं कि इसके बाद मैंने अपना बिजनेस शुरू किया, यह डिजाइनिंग का ही काम था। 4-5 साल काम करने के बाद जो पैसा आया, उससे ‘माही वे’ सॉन्ग तैयार किया, लेकिन इसके वीडियो बनाने के लिए बजट नहीं था। यह गाना मैंने मेरे दोस्त को दे दिया। उसने उसे अपनी कार में प्ले किया, कार में उनके दोस्त संजय बांठिया बैठे थे। उन्हें वह गाना पसंद आया और मुझसे मुलाकात की। संजय ने इसके लिए वीडियो तैयार करवाया, लेकिन यह गाना नहीं चला। छह महीने तक मैंने कुछ नहीं किया। उसके बाद बांठिया ने म्यूजिक फर्म शुरू की। यहां से हम नए सिंगर्स के साथ काम करने लगे और लोग पसंद करने लगे।

महेश भट्ट से मिली तारीफ
मैंने मुम्बई में कई सॉन्ग्स के लिए बहुत से म्यूजिक डायरेक्टर्स और प्रोडक्शन हाउस से सम्पर्क किया। ऐसे में एक दिन भट्ट साहब के यहां से फोन आया और कहा गया कि ‘हंसी बन गए’ सॉन्ग सभी को पसंद आया, इसके लिए मीटिंग करने आ जाओ। मैं अगले दिन मुम्बई पहुंच गया और भट्ट साहब से मुलाकात हुई। यह मेरे लिए खास लम्हा था, उन्होंने मेरे लिखे गाने को पसंद किया। भट्ट साहब ने कहा कि इस गाने का फीमेल वर्जन किसी अन्य गीतकार से लिखवाएंगे, फिर मैंने रिक्वेस्ट करते हुए एक दिन का समय मांगा और यह वर्जन भी लिखने की बात कही। इस ड्यूरेशन में मैंने फीमेल वर्जन भी लिख दिया और वह उन्हें बेहद पसंद आया। दोनों वर्जन में मेरा लिखा गाना रिलीज हुआ और यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि रही। यहीं से एक और गाने का कॉन्ट्रेक्ट हो गया।

एक बार मुम्बई से वापस आने का मन हो गया था
‘हंसी…’ गाने के बाद फिर से जयपुर आ गया, यहां डेढ़ साल रहा। इस दौरान मुम्बई से कई कॉल आए और फिर एक दिन अपनी कार लेकर मुम्बई निकल पड़ा। आठ महीने स्ट्रगल रहा और इस दौरान छह महीने की कार की किस्त भी ड्यू हो गई। मैं सामान्य परिवार से था, इसलिए घरवाले भी थोड़ा डर गए। मैंने मुम्बई से फिर जयपुर आने का फैसला लिया, लेकिन इसी बीच एक रात वड़ा-पाव की स्टॉल पर चार गार्ड मेरे ही गाने को गाते हुए आए। यह सुनकर बहुत अच्छा लगा, फिर से हिम्मत जुटाई और नए म्यूजिक कंपोजर्स के साथ काम करने लगा। यहां से कुछ अच्छे प्रोजेक्ट मिलने शुरू हो गए और नामचीन म्यूजिक कंपनीज ने कॉन्ट्रेक्ट कर लिया। यहीं से ‘रेस’, ‘सिम्बा’ जैसी फिल्मों में भी गाने लिखे। मैंने कभी घर या गाड़ी का सपना नहीं देखा था, लेकिन आज मेरे पास बीएमडब्ल्यू है।

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