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ढाबे पर मांजते थे थाली, ऐसे बन गए बॉलीवुड में कॉमेडी के सुपरस्टार

एक ढाबे पर पचास थाली मांजने के 150 रुपए मिलते थे

Jun 15, 2019 / 05:58 pm

सुनील शर्मा

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प्रख्यात बॉलीवुड कलाकार संजय मिश्रा आज दुनिया भर में जाना-माना नाम है लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनके पास कुछ नहीं था। पत्रिका से एक खास बातचीत में उन्होंने बताया कि किस तरह वो एक आम युवा से इतने बड़े स्टार बने। जानिए उनकी कहानी, उनकी ही जबानी

मैं कई बीमारियों से घिर गया था। पेट का ऑपरेशन हुआ, इससे उबरा नहीं था कि पिताजी चल बसे। मन इतना ऊब गया कि मुंबई छोडक़र ऋषिकेश चला गया। एक ढाबे वाले ने कहा कि पचास थाली मांजोगे तो डेढ़-सौ रुपए मिलेंगे। कुछ तो करना ही था। एक दिन में ही लोग मुझे पहचानने लगे और मेरे साथ फोटो खिंचवाने लगे कि- अरे! आपको तो गोलमाल फिल्म में देखा है! उधर मां रोने लगी कि वापस चले आओ। मुझे कहना यह है कि अच्छाई हो या बुराई, सब आपका पीछा करती है। आपने जो भी किया है, वह भुलाया नहीं जाएगा।

छोटे-मोटे रोल करने को मैं रिहर्सल करना बोलता था। रिहर्सल, वह भी प्रोड्यूसर के पैसों से! साथ ही नई जगहों पर जाने और लोगों को ऑब्जर्व करने का मौका, इससे अच्छा क्या हो सकता है? चीजों को देखने का आपका नजरिया यह तय करता है कि क्या स्ट्रगल है और क्या नहीं, मेरे लिए स्ट्रगल अपने काम में ईमानदारी बरतने से जुड़ा हुआ है। वड़ा पाव खाकर गुजारा करना और छोटे-मोटे रोल करना, यह कोई स्ट्रगल नहीं है। एनएसडी से पासआउट होकर 1991 में जब मुंबई आया था तो मैंने भी यह किया। तब मैंने लाइटिंग से लेकर आर्ट डायरेक्शन और कैमरा वर्क तक, सब कुछ किया, फोटोग्राफी भी की और कुछ पैसे भी कमाए। घर की याद आती थी तो अंधेरी स्टेशन जाकर दिल्ली जाने वाली राजधानी ट्रेन को देखता था।

वर्ष 1999 में किक्रेट वल्र्ड कप सीरीज के दौरान ईएसपीएन स्टार स्पोर्ट्स के लिए मेरे एपल सिंह वाले विज्ञापन इतने लोकप्रिय हो गए कि इस चरित्र को चैनल के चेहरे के रूप में अपना लिया गया। फिल्में, नाटक, टीवी सब कुछ किया है। आज लोग मुझे चेहरे से पहचानते हैं लेकिन मुझे यह सब सफलता नहीं लगती है। आपकी सफलता इसमें है कि आपने खुद को पहचान लिया है। आपने खुद से किए गए वादे पूरे कर लिए हैं। आपने एक इंसान के तौर पर खुद को अच्छे माक्र्स दे दिए हैं।

खुलकर हंसिए
सबसे पहले आपको खुलकर हंसना आना चाहिए। यह एक ऐसी चीज है, जिसे मैं हमेशा अपने साथ रखता हूं। आपका अंतस जब तक खिला-खिला नहीं होगा, दुनिया की अच्छी चीजें आपको नजर ही नहीं आएगी। हंसी आपके अंदर से फूटनी चाहिए। आप अपने भीतर से खुश रहिए।

सर्वज्ञ नहीं, गीली मिट्टी बनिए
कभी भी खुद को सर्वज्ञ नहीं मानता। जब तक आप गीली मिट्टी हैं यानी सीखने को तैयार हैं तो आपमें कोई भी रंग मिलाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में कभी मत आइए कि सीखना बंद हो जाए। अगर कुछ समझ नहीं आ रहा है तो नई शुरुआत कीजिए। आज भी एक शुरुआत है और कल भी एक शुरुआत होगी। एक जिंदा इंसान कभी भी सफर शुरू कर सकता है।

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