ऐसी परिस्थिति में उन्होंने परिवार की मदद करने के लिए काम करना शुरू किया। साड़ी बुनने की एक यूनिट में वह ढाई रुपए दिहाड़ी में साड़ी बुनने का काम करने लगे। यहां उन्होंने करीब आठ साल काम किया। 1970 में उन्होंने खुद का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने उस घर को गिरवी रखकर 10 हजार रुपए का ऋण लिया, जो उनके भाई ने 1968 में फुलिया में खरीदा था।
बड़े भाई धीरेन कुमार बसाक के साथ उन्होंने साडिय़ों को बेचने के लिए कोलकाता की यात्रा शुरू की। वे स्थानीय बुनकरों से साड़ी खरीदते, फिर उन्हें बेचने के लिए कोलकाता ले जाते थे। शुरुआती दिनों में वे कंधे पर साडिय़ों का 80-90 किलो का गट्ठर लादकर कोलकाता की गलियों में घूमकर डोर-टू-डोर साड़ी बेचते थे। साडिय़ों की गुणवत्ता और वाजिब दामों के कारण उनके ग्राहक बढऩे लगे। मुनाफा कमाने से उनके पास कुछ धन जमा हो गया तो उन्होंने थोक व्यापारी बनने का फैसला किया।
1987 में बिरेन ने अपने घर में करीब आठ लोगों के स्टाफ के साथ खुद की बिरेन बसाक एंड कंपनी शुरू की। धीरे-धीरे उनका बिजनेस बढऩे लगा और टर्नओवर करोड़ों तक पहुंच गया, जिसके दम पर वह साड़ी की फील्ड में एक कामयाब व्यवसायी बन गए।