मोतीलाल वोरा कांग्रेस (Congress) राजनीति में रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) का निधन 21 दिसंबर को हुआ था। वह 93 वर्ष के थे और तबीयत बिगड़ने के चलते उन्हें फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 93 साल के मोतीलाल वोरा ने कांग्रेस पार्टी में दो दशक तक कोषाध्यक्ष रहने के अलावा अहम जिम्मेदारी निभाई थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहने से लेकर यूपी में राज्यपाल की गद्दी संभालने तक उन्होंने अपनी सियासी पारी में कई रंग बिखेरे। 1993 में मोतीलाल वोरा ने यूपी के गवर्नर के तौर पर जिम्मेदारी संभाली थी और तीन साल तक वहां राज्यपाल रहे। उनके राज्यपाल रहते हुए 1995 में यूपी गेस्टहाउस कांड हुआ था, जिसके बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने राजभवन में धरना दिया था और सपा सरकार को भंग करने की मांग की थी।
रामविलास पासवान रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) भारतीय राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने 8 अक्टूबर, 2020 को 74 की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा था। रामविलास पासवान वैसे तो केंद्रीय मंत्री थे मगर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से भी उनका गहरा नाता था। वे कई बार सहारनपुर आए थे और यहां अपनी सियासी पारी को और मजबूती देने का प्रयास किया था। 1998 के लोकसभा चुनाव में जनता दल की तरफ से प्रत्याशी दीपक जाटव के समर्थन में सभा करने रामविलास पासवान सहारनपुर आए थे। इसके बाद 2003 में भी तीन बार सहारनपुर जिले में आए। फिर 2007 के विधानसभा चुनाव में मांडूवाला गांव में कार्यक्रम में शामिल हुए तो, 2012 के विधानसभा चुनाव में रेलवे स्टेशन के पास सभा में पहुंचे थे। इसके बाद उनका सहारनपुर आना नहीं हुआ।
अजय सिंह उत्तर प्रदेश शासन में सचिव के पद पर तैनात रहे आईएएस अजय सिंह का 5 दिसंबर को निधन हो गया था।अजय सिंह की मृत्यु पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टीम 11 की बैठक के दौरान अपने अधिकारियों के साथ श्रद्धांजलि दी थी। पटना के रहने वाले अजय कुमार सिंह 1998 बैच के आईएएस आफिसर थे। मृत्यु से वह उत्तर प्रदेश सरकार में खादी ग्रामोद्योग विभाग के सचिव के पद पर तैनात थे। उन्होंने वाराणसी में विधान परिषद चुनाव में पर्यवेक्षक के रूप में कार्य किया था। इसके अलावा उन्होंने गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी भी अपनी सेवाएं दी थीं।
डोम राजा बनारस की चर्चित डोम बिरादरी से नाता रखने वाले डोम राजा जगदीश चौधरी का निधन इस साल 25 अगस्त को हुआ था। वे पीएम मोदी के प्रस्तावक भी थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में जगदीश चौधरी पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे। ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी राजनीतिक दल ने डोम राजा परिवार के सदस्य को चुुनाव में प्रस्तावक बनाया था। तब जगदीश चौधरी ने इस बात को लेकर खुशी का इजहार किया था। उन्होंने कहा था कि पहली बार किसी राजनीतिक दल ने उन्हें यह पहचान दी और वह भी खुद प्रधानमंत्री ने। उन्होंने कहा था कि उनका परिवार बरसों से लानत झेलता आया है। प्रस्तावक बनाए जाने के बाद उन्होंने पीएम मोदी को धन्यवाद कर उम्मीद जताई की उनकी दशा में कुछ सुधार जरूर होगा।
चेतन चौहान उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री और पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान (Chetan Chauhan) का निधन 16 अगस्त को हुआ था। कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसी दौरान किडनी में संक्रमण बढ़ गया और उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में रेफर किया गया। यहीं पर इलाज के दौरान रविवार को उनकी मौत हो गई थी। चौहान 72 साल के थे। भारतीय क्रिकेट टीम में बल्लेबाज रह चुके चेतन चौहान अमरोहा जिले की नौगांवा विधानसभा सीट से 2017 में विधायक चुने गए थे। क्रिकेट से संन्यास लेकर वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। चौहान योगी सरकार में सैनिक कल्याण, होम गार्ड, पीआरडी, नागरिक सुरक्षा विभाग के मंत्री थे।
लालजी टंडन लखनऊ में जन्मे लालजी टंडन भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार थे। उनका निधन इस साल 21 जुलाई को मेदांता अस्पताल में हुआ था। लालजी टंडन ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल के पद पर रहते हुए आखिरी सांस ली थी। लालजी टंडन को यूपी की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए जाना जाता है। 90 के दशक में प्रदेश में भाजपा और बसपा की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है।1978 से 1984 और 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। 19991 से 92 की यूपी सरकार में वह मंत्री भी बने। इसके बाद लालजी टंडन 1996 से 2009 तक लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1997 में फिर से वह विकास मंत्री बने।
मौलाना कल्बे सादिक ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उपाध्यक्ष व शिया धर्म गुरू मौलाना कल्बे सादिक ने भी इस साल दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने लखनऊ के एरा मेडिकल कालेज में अंतिम सांस ली थी। दुनिया भर में अलग पहचान रखने वाले मौलाना कल्बे सादिक पूरी जिंदगी शिक्षा को बढ़ावा देने और मुस्लिम समाज से रूढ़ीवादी परंपराओं को खत्म करने की कोशिश करते रहे। लखनऊ से लेकर देश के तमाम जगहों पर उन्होंने कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कराई। तौहीद-उल मुसलमीन ट्रस्ट के जरिए शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप देने और मार्डन एजुकेशन के लिए यूनिटी और एमयू कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थाएं शुरू किया। लखनऊ के एरा मेडिकल को स्थापित कराने में कल्बे सादिक का अहम रोल रहा है।
कमल रानी वरुण कोरोना संक्रमण के कारण उत्तर प्रदेश कैबिनेट मंत्री और कानपुर के घाटमपुर से विधायक कमल रानी वरुण की दो अगस्त को मौत हो गई। उनकी मौत से राजनीतिक गलियारों में एकाएक हलचल मच गई। पार्षद से सांसद और फिर कैबिनेट मंत्री का सफर तय करने वाली कमल रानी ने 1989 में भाजपा के टिकट पर द्वारिकापुरी वार्ड से कानपुर पार्षद चुनी गई थीं। चुनाव जीत कर नगर निगम पहुंची कमलरानी 1995 में दोबारा उसी वार्ड से पार्षद निर्वाचित हुईं। सांसद रहते कमलरानी ने लेबर एंड वेलफेयर, उद्योग, महिला सशक्तिकरण, राजभाषा व पर्यटन मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समितियों में रहकर काम किया। वर्ष 2012 में पार्टी ने उन्हें रसूलाबाद (कानपुर देहात) से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा लेकिन वह जीत नहीं सकी। 2015 में पति की मृत्यु के बाद 2017 में वह घाटमपुर सीट से भाजपा की पहली विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंची थीं।
सत्यदेव सिंह उत्तर प्रदेश के गोंडा और बलरामपुर से तीन बार सांसद रहे सत्यदेव सिंह का 17 दिसंबर को इसी साल निधन हो गया था। कोरोना से जंग जीतने के बाद उनका निधन हुआ था। बताया जा रहा है कि सत्यदेव सिंह का 12 दिनों से मेदांता हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। आईसीयू से ठीक होकर आते ही सत्यदेव सिंह को दिल का दौरा पड़ा था। 12 दिन पहले ही उनकी पत्नी की कोरोना से मौत हुई थी। माना जाता है कि पूर्व सांसद सत्यदेव सिंह को पत्नी की मौत की खबर जैसे ही मिली, उन्हें दिल का दौरा पड़ा और सांसें रूक गई। सत्यदेव सिंह, गोंडा और बलरामपुर से तीन बार सांसद बने थे। उनकी पत्नी सरोज रानी जिला पंचायत अध्यक्ष थीं।
राजाराम कानपुर देहात के चर्चित बेहमई कांड के वादी राजाराम फैसला आने का इंतजार करते करते इसी साल दुनिया को अलविदा कह गए।लंबी बीमारी के चलते उनकी मौत हो हुई थी। एक लंबी बीमारी के बाद 85 की उम्र में उनका निधन हो गया। कहा जाता है कि राजाराम ने फूलनदेवी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। फूलनदेवी ने वादी राजाराम के सगे भाई और भतीजों समेत परिवार के छह लोगों की हत्या कर दी थी।बेहमई गांव में हुए नरसंहार की घटना का मुकदमा बीते 39 वर्ष से अदालत में विचाराधीन है और बीते जनवरी में अंतिम समय में फैसला टल गया था। इसके बाद से बीमार वादी राजाराम फैसले का इंतजार कर रहे थे।