दरवाजों पर गौरैया।
फुदक रही है किलक रही है
चहक रही है गौरैया।
आती जाती मन हर्षाती
जी बहलाती गौरैया।
मोती जैसी काली आँखे
टिक टुक देखे गौरैया।
आहट सुनते ही उड़ जाती
फुर्र फुर्र ये गौरैया।
फुलवारी और छत पर फिरती
रानी जैसी गौरैया।
सारे अक्षत चुन चुन खाती
देवी माता गौरैया।
नन्हीं नन्हीं चुट-चुट करती
अच्छी लगती गौरैया।
एक सलोनी बिटिया हो तो
नाम रखेंगे गौरैया।
गौरैया की संख्या भारत की नहीं दनियाभर में घट रही है। गैरैया एक ऐसी खूसबत चिड़िया है कि इस पर पहले भी कविताएं लिखी गई हैं। मशहूर कवि केदारनाथ सिंह की छोटी सी कविता और मोहम्मद अल्वी की ये शेर भी पढ़िए-
मुझसे घबराती है छोटी गौरैया
क्योंकि मैं उड़ता नहीं घटिया हूं।
मोहम्मद अल्वी का शेर-
अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे।