लखनऊ

World Environment Day: कोरोनाकाल में यूपी में गंगा में नजर आयी डाल्फिन, तो यमुना में बढ़ा घड़ियालों का कुनबा

World Environment Day special. गंगा में उतराते शवों से स्थिति बिगड़ी, तट भी हुआ प्रदूषित.

लखनऊJun 05, 2021 / 08:31 pm

Abhishek Gupta

World Environment Day

अभिषेक गुप्ता.
लखनऊ. World Environment Day. आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस साल पर्यावरण दिवस को उस मौके पर याद कर रहे हैं जब पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना (Coronavirus) की चपेट में है। पिछले दो महीने से पूरा यूपी कर्फ्यू (Corona curfew) की वजह से लॉक था। औद्योगिक से लेकर हर गतिविधियां लगभग ठप थीं। इसकी वजह से प्रदूषण (Pollution) के स्तर में कमी आयी। शोर प्रदूषण कम हुआ तो गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) नदियां भी अपेक्षाकृत साफ हुई। खुशखबर यह रही है कि इस साल जहां गंगा में डॉल्फिन (Dolfin) अठखेलियां करतीं नजर आयीं वहीं चंबल (Chambal) क्षेत्र में इटावा के आसपास यमुना में घडिय़ाल (Crocodile) का कुनबा खूब बढ़ा। लेकिन अप्रेल माह में गंगा और अन्य नदियों में उतराते शवों और गंगा के तट पर बालू में दबा दिए गए अनगिनत शवों ने जलीय प्रदूषण के साथ-साथ वायु प्रदूषण को बढ़ाया। गंगा में शव फेंकने को लेकर देश-विदेश में बदनामी अलग से हुई।
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गंगा नदी वर्षों से कूड़े और कचरे को ढोते-ढोते हाफ रही है। लेकिन, बीते साल लॉकडाउन में उसमें सांस आ गई। मेरठ के पास गंगा की लहरों के डॉल्फिन नजर आई। केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने भी माना कि यूपी में गंगा का जितना हिस्सा आता है वहां पानी पूरी तरह स्वच्छ रहा। सीपीसीबी के मुताबिक पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गई और इसके साथ ही नाइट्रेट की मात्रा में कमी आई। हालांकि, इस बार के लॉकडाउन में ऐसी कोई खबर नहीं आई।
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प्रदूषण में आयी कमी-
लॉकडाउन से पहले प्रमुख नदियों-गंगा-यमुना और गोमती की स्थिति बेहद खराब थी। नालों से निकलता गंदा पानी प्रदूषण के मुख्य कारण थे। औद्योगिक शहर कानपुर में गंगा और आगरा में यमुना नदी बहुत प्रदूषित थी। लॉकडाउन में इनकी स्थिति में तो कोई खास विशेष सुधार नहीं आया। लेकिन प्रदूषण में जरूर कमी आयी। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसी साल अप्रेल में यमुना नदी में प्रदूषण की स्थिति पर जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें कैलाश घाट से प्रवेश करते हुए ताजमहल के आगे तक यमुना लगभग तीन गुना प्रदूषित हुई है। कैलाश घाट और ताजमहल के पीछे दशहरा घाट, दोनों ही जगहों पर बीते साल से ज्यादा यमुना नदी में जहर घुला है। कमोबेश यही हाल गंगा का भी है। गंगा भी इस बीच चार गुना ज्यादा प्रदूषित हुई है।
सहारनपुर से दिखा हिमालय-
लॉकडाउन में हवा साफ हुई, तो पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी यूपी के सहारनपुर से हिमालय पर्वत की चोटियों दिखने लगीं। यह सहारनपुर से 150 किलोमीटर से अधिक दूरी पर बताई जा रही है। दोनों वर्षों में लगे लॉकडाउन और कोरोना कर्फ्यू में सहारनपुर से हिमालय पर्वत साफ-साफ देखा गया।
आगरा में थोड़ा कम हुआ प्रदूषण-
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में लखनऊ और राज्य के अन्य प्रमुख शहरों का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 100 के आसपास रहा। जो काफी संतोषजनक है। अप्रैल में लखनऊ का एक्यूआई 78 दर्ज किया गया, जो मध्यम श्रेणी में आता है। लॉकडाउन से पहले एक्यूआई 300 से 400 के बीच रहता था। कभी उससे भी ज्यादा। जो सेहत के लिए काफी हानिकारक है।
भीड़ थमे तो बात बने-
उत्तर प्रदेश की हवा में प्रदूषित होने के पीछे दो प्रमुख कारण यातायात की भीड़ और निर्माण गतिविधियां हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के भी दिल्ली-एनसीआर में निर्माण पर प्रतिबंध नहीं लगाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और नोएडा प्राधिकरण को फटकार लगाई थी। किसानों द्वारा पराली जलाने से भी पर्यावरण को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हानिकारक पदार्थों जैसे सूक्ष्म जीव, रसायन, औद्योगिक, घरेलू या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से उत्पन्न दूषित जल आदि के मिलने से नदियां प्रदूषित हुई है।

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