लखनऊ. प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) का उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के सोनभद्र (Sonbhadra) में हुए खूनी संघर्ष के बाद पीड़ित परिवारों से मिलाए जाने की जिद करना, प्रशासन के रोके जाने पर धरने पर बैठना, इसके बाद कांग्रेस (Congress) शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाना, कांग्रेसियों को धरना स्थल पर पहुंचने का आह्वान करना, कई सवाल खड़े करता है। क्या कांग्रेस का मकसद खूनी संघर्ष के नाम पर उत्तरप्रदेश में सरकी हुई राजनीतिक धरती को वापस पाना है या सच में ही पीड़ितों में प्यार बांटना है, दुख की घड़ी में संवेदना व्यक्त करना है।
सरकार और शासन ने उन्हें सोनभद्र तो जाने नहीं दिया, लेकिन पीड़ितों व उनके परिजनों से प्रियंंका की मुलाकात पर सहमति जता दी। उन्हें उसी चुनार गेस्ट हाउस (Guest House) में लाकर पीड़ितों से मुलाकात करवाई, जहां कभी भाजपा की कद्दावर नेता विजय राजे सिंधिया (Vijay Raje Scindia) को नजरबंद किया गया था। कांग्रेस को राजनीतिक बिसात बिछाने के लिए जमीन मिली है या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन यह मामला ज्यादा तूल पकड़ता उससे पहले ही सरकार ने कांग्रेस की मांग को मानकर उन्हें झटका दे दिया है।
Congress revive” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/07/20/priyankanews2_4865402-m.jpg”> प्रियंका का यह कदम राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में निश्चित रूप से खोई हुई राजनीतिक भूमि तलाशने वाला था। एक बात यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में जिस तरह से उनका नाम आगे लाया जा रहा है, उससे पहले माहौल बनाना था, ताकि शानदार ताजपोशी हो सके। लोकसभा चुनाव 2019 में उन्हें पूर्वांचल का प्रभारी बनाया गया था और उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन परिणाम आशानुकूल नहीं रहे। सवाल यह उठता है कि 26 घंटे तक चले इस नाटकीय घटनाक्रम से कांग्रेस को क्या मिला? क्या कांग्रेस अपने मकसद में सफल हुई? क्या इससे आदिवासियों को कांग्रेस अपनी ओर करने में सफल हो पाएगी? क्या सोनभद्र के रास्ते योगी का विकल्प बन पाएंगी? उत्तरप्रदेश की राजनीति में भाजपा (BJP), समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) मतदाताओं में अपने-अपने तरह से पैठ बनाए हुए हैं, चाहे वह जातिवाद, क्षेत्रवाद या धर्म आधारित हो। इन सबके बीच में से होकर उत्तरप्रदेश की जनता का विश्वास हासिल करना क्या कांग्रेस के लिए सरल होगा, यह तो समय ही बताएगा।
मायावती-अखिलेश की तुलना में प्रियंका ने कम से कम कोशिश तो की- इरादे कुछ भी हो पर प्रियंका ने घटना के बाद आने और पीड़ितों से मिलने की कोशिश तो की, जनता में एक मैसेज तो देने में सफल वह रही। वहीं बसपा प्रमुख मायावाती (Mayawati) और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने उत्तरप्रदेश में होते हुए भी जाने का प्रयास तक नहीं किया। वह केवल बयानवीर बने रहे। वहीं भाजपा ने इसे प्रियंका का सियासी ड्रामा ही नहीं कहा वरन इसे राज्य की कानून व्यवस्था बिगाड़ने की सोचीसमझी साजिश करार दिया है।