लखनऊ

लोकसभा चुनाव से पहले कुछ ऐसे बन रहे सियासी समीकरण, यूपी में महागठबंधन की संभावनाएं कम

उपचुनाव में बीजेपी की शिकस्त से उत्साहित सपा-बसपा गठबंधन को आतुर हैं, लेकिन इस खांचे में कांग्रेस पार्टी कहीं फिट होती नहीं दिख रही है।

लखनऊJun 28, 2018 / 02:54 pm

Hariom Dwivedi

…तो इसलिये कांग्रेस के दूरी बना रहे अखिलेश-मायावती, ये हैं अहम कारण

लखनऊ. गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना और नूरपुर उपचुनाव में बीजेपी की शिकस्त से उत्साहित सपा-बसपा गठबंधन को आतुर हैं। लेकिन इस खांचे में कांग्रेस पार्टी कहीं फिट होती नहीं दिख रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद अखिलेश यादव बसपा सुप्रीमो मायावती के ‘जूनियर पार्टनर’ तक बनने को तैयार हैं, पर वह ‘अच्छे लड़कों’ की सियासी दोस्ती आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं दिख रहे हैं। आइए जानते हैं कि आखिर दोनों दल कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने में क्यों हिचक रहे हैं-
कांग्रेस को फायदा, सपा-बसपा को नुकसान
उत्तर प्रदेश में लंबे समय से कांग्रेस की नैया डगमगा रही है। हाल ही में संपन्न हुए उपचुनाव में जहां सपा-बसपा ने मिलकर बीजेपी को शिकस्त दी, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी की करारी शिकस्त ने यूपी में पार्टी को और कमजोर साबित कर दिया। ‘अच्छे लड़कों’ के गठबंधन के बावजूद 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा। दोनों दलों के रणनीतिकारों का मानना है सपा-बसपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ तो सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस पार्टी को ही होगा। गठबंधन की स्थिति में सपा-बसपा का वोट तो कांग्रेस को ट्रांसफर हो जाएगा, लेकिन कांग्रेस से नुकसान के सिवा इन दलों को कुछ नहीं मिलने वाला।
कांग्रेस साथ आई तो फायदा भाजपा को
सपा-बसपा के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी के पास अब न तो दलित वोटर हैं और न ही पिछड़े। कांग्रेस पार्टी के पास ज्यादातर सवर्णों के ही वोट हैं। अगर कांग्रेस गठबंधन में शामिल होगी तो उसे मिलने वाले सवर्ण वोट भाजपा में चले जाने की संभावना ज्यादा है। इसलिये जोनों दलों ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर करने का मन बना लिया है। दोनों दलों के रणनीतिकारों का मानना है कि कांग्रेस के साथ लड़ने से गठबंधन को नुकसान और भाजपा को फायदा होगा। शायद यही वजह है कि कांग्रेस पार्टी सपा और बसपा के लिये अछूत हो गई है। उन्हें मालूम है कि अगर कांग्रेस पार्टी का साथ लिया तो अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी ही मजबूत होगी।
बीजेपी से लड़ने को अकेले ही पर्याप्त
सपा-बसपा को लगता कि दोनों दलों का बेस वोटबैंक बीजेपी की शिकस्त के लिये पर्याप्त है। उपचुनाव में भी ऐसा ही देखने को मिला भी है। इसी कारण दोनों दल गठबंधन में ज्यादा दलों को शामिल करने से बच रहे हैं, कि कहीं उन्हें ज्यादा सीटें बांटनी न पड़ जाएं। ऐसे में कांग्रेस के लिये गठबंधन में जगह बना पाना मुश्किल काम होगा।
…तो सशर्त गठबंधन में शामिल हो सकती है कांग्रेस
समझौते के तहत सपा-बसपा भले ही अमेठी और रायबरेली की सीट कांग्रेस के लिये छोड़ दें, लेकिन दोनों के दलों के रणनीतिकार कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने के पक्षधर नहीं हैं। लेकिन फिर भी अगर कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने की स्थिति बनी तो बदले में सपा-बसपा कांग्रेस की मजबूरी का फायदा उठा सकते हैं। दोनों दलों के रणनीतिकारों का मानना है कि यूपी में लगातार कांग्रेस का वजूद कम होता जा रहा है। बावजूद इसके कांग्रेस गठबंधन करना चाहती है तो बदले में उसे कांग्रेस के प्रभाव वाले राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सपा-बसपा को सीटे देनी होंगी, ताकि यूपी के बाहर भी इन दलों का विस्तार हो सके।
कांग्रेस ने शुरू की अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी
अकेले चुनाव लड़ने की शंकाओं के मद्देनजर कांग्रेस नेतृत्व ने पहले ही पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से राज्य की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिये तैयार रहने को कहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी शायद ही सपा-बसपा की शर्तों पर गठबंधन करने को तैयार हो। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस की नजर सपा-बसपा के बागियों पर भी है। गठबंधन न होने की सूरत में पार्टी उन्हें टिकट दे सकती है।

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