भाजपा यब बात अच्छे से जानती है कि चाहे वह मुस्लिम समाज के लिए कितने भी काम कर ले। अल्पसंख्यक समाज उसे वोट नहीं देने वाला है। लेकिन अगर पार्टी अपने किसी सहयोगी के सिंबल पर या गठबंधन से मुस्लिम या हिंदू प्रत्याशी उतारती है तो उसके जीत का चांस बढ़ जाता है।
समाजवादी पार्टी के विधायक अब्दुल्ला आजम को एक केस में दो साल की सजा होने के बाद सीट खाली हो गई थी। इसके बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने यह सीट अपने गठबंधन में शामिल केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) को दे दी। पार्टी ने इस सीट से पूर्व में सपा नेता रहे शफीक अहमद अंसारी को उम्मीदवार बनाया। जिन्हें दोनों ही समुदाय से जमकर वोट मिले और आजम खां के दबदबे वाली इस सीट पर भाजपा गठबंधन ने जीत दर्ज किया।
2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सभी 80 सीटों को जीतने का टारगेट किया है। इसमें सबसे बड़ी बाधा मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत हासिल करना है। इसमें खासतौर पर सहारनपुर, संभल, अमरोहा, नगीना, बिजनौर, मुरादाबाद जैसी सीटें शामिल हैं। इन सीटों पर भाजपा ने दो साल पहले से ही तैयारी शुरू कर दी है। कई केंद्रीय मंत्रियों के साथ संगठन के पदाधिकारियों को जुटा दिया गया है। भाजपा के सहयोगी दल भी इन सीटों पर अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। खासतौर पर अपना दल(एस) ने अपना फोकस मुस्लिम बहुल सीटों पर टिका रखा है। अपना दल(एस) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक स्वार विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत के बाद पार्टी इस पहलू पर गंभीरता से काम कर रही है।
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फिलहाल प्रदेश की 64 सीटों पर है भाजपा का कब्जाइस वक्त भाजपा का प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 64 पर कब्जा है। पार्टी के सहयोगी दल अपना दल(एस) के पास भी दो लोकसभा सीटें हैं। वहीं इस वक्त समाजवादी पार्टी के पास तीन सीटें है। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर चुनाव जीती थी। लेकिन 2022 में हुए उपचुनावों में सपा को आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा बीएसपी 2019 के चुनावों में 10 सीटें जीती थी। लेकिन हाल ही में गाजीपुर के पूर्व सांसद अफजाल अंसारी को चार साल से अधिक की सजा सुनाये जाने के बाद उनकी सदस्यता को भी खत्म कर दिया गया है। अब बसपा के पास सिर्फ नौ सीटें ही बची हैं।