पुलिस और प्रशासन ने शस्त्र लाइसेंस लेने की प्रक्रिया को जटिल की तो लोगों में अवैध हथियार रखने का शौक बढ़ गया है। लाइसेंसी रिवॉल्वर और पिस्टल नहीं तो लोग देसी कट्टा और तमंचा से ही भौकाल पूरा कर रहे हैं। एक तरफ जहां शौकिए भौकाल पूरा कर रहे तो दूसरी तरफ शातिर कई घटनाओं को अंजाम भी दे रहे हैं। यही वजह है कि कट्टे और तमंचे की घटनाएं पिछले तीन सालों दो से चार गुनी बढ़ गई हैं। पिछले दिनों पूर्वांचल के जिले जौनपुर और सुजातगंज की घटनाएं सामने भी आई थी। सूत्रों की माने तो चित्रकूट और हमीरपुर के चंबलों में अभी कट्टे बनते हैंं। वहीं से अन्य शहरों के लोगों तक पहुंचाएं जाते हैं।
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बिना आपके फिंगर प्रिंट के नहीं चलेगी ये रिवाल्वर, महिलाओं के लिए खास कट्टे और तमंचे में क्या होता है अंतर (Difference between Tamancha and Katta) कट्टा लोहे कों काटकर लोग खुद से बना लेते हैं। इसकी लोहे के पाइप काटकर 12 बोर की बैरल होती है। इसमें बंदूक में उपयोग होने वाली गोलियों को डालकर ही चला लेते हैं। या तो बनाने वाले कारीगर खुद गोलियां भी तैयार कर लेते हैं। वहीं, तमंचा एक तरह से कट्टे का अपग्रेड होता है। तमंचा 15 बोर का होता है। बाकी यह कट्टा की तरह ही होती है।
बाजारों में खुलेआम मिलता है कट्टा बनाने का सामान कट्टा बनाने के लिए बाजारों में आसानी से खुलेआम सामान मिलता है। लोग अपनी जरूरत के अनुसार पुलिस से छुपकर कट्टा तैयार करा लेते हैं। हाल ये है कि हजार रुपए से लेकर 20-25 हजार रुपए में कट्टा और तमंचा लोगों को उपलब्ध हो रहा है। पुरुषों के अलावा महिलाएं और बच्चे भी इस काम को अंजाम देते हैं।
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पिस्टल और रिवॉल्वर नहीं होते एक, जानिए क्या है अंतर क्या आज भी होता है इस गांव में कट्टों का कारोबार आजमगढ़ में मुबारकपुर थाना इलाके का गांव बम्हौर तमसा नदी के किनारे पर बसा हुआ है। गांव की जमीन काफी ऊंची नीची थी। वहां लोहार समेत कई पिछड़ी जातियों के लोग रहते हैं। बताया जाता है कि कुछ वर्षों पहले गांव का लोहार चोरी छिपे अवैध हथियार बनाने का काम करते थे। पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ लिया। लेकिन जब छूट कर आया तो फिर इसी काम में जुट गया। ऐसी ही काफी पैसा भी कमा लिया। उसे देखकर इलाके के कई लोग इस धंधे में शामिल हो गए। अवैध हथियारों को बनाने का काम इतना बढ़ गया थी कि महिलाएं बच्चे सब मिलकर माल मुम्बई समेत अन्य जगहों पर भेजने लगे। सूत्रों के अनुसार बताया जाता है यहां अभी भी कट्टे बनाए जाते हैं। हालांकि पुलिस के हाथों कुछ नहीं लगता।