संघ ने पत्र में लिखा है कि संकट और आपातकालीन स्थितियों का प्रबंधन करने के लिए अनुभवी डॉक्टरों की आवश्यकता होती है, बिजनेसमैन प्रबंधकों की नहीं। सरकार के फैसले को लागू किया जाता है तो चीजें जटिल हो जाएंगी। संघ अध्यक्ष डॉ. एके सिंह एवं महामंत्री डॉ. क्षेत्रपाल यादव की अगुवाई में सोमवार को सदस्यों की ऑनलाइन बैठक हुई। बैठक में डॉक्टरों ने इसे बेसिर-पैर का फरमान बताया। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इसे लागू करेगी तो इसका विरोध किया जाएगा। इसकी रणनीति केन्द्रीय कार्यकारिणी तय करेगी।
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…तो चीजें और बदतर होंगी
उत्तर प्रदेश प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के महामंत्री डॉ. अमित सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री व उच्चाधिकारियों को लिखे पत्र में इस फैसले पर पुनर्विचार को कहा गया है। कोरोना महामारी के दौरान बड़ी संख्या में डॉक्टरों की जान गई। खराब स्थितियों व कम से कम सुविधाओं में डॉक्टरों ने काम किया और कर रहे हैं, लेकिन गैर-चिकित्सक प्रमुख होगा तो चीजें और बदतर होंगी। चिकित्सकों के पद पर एमबीए व अन्य गैर तकनीकी अधिकारियों की तैनाती चिकित्सकों को हतोत्साहित करेगी। होना तो यह चाहिए कि वर्तमान परिस्थितियों में चिकित्सकों के सेवा भाव को देखते हुए उन्हें और अधिकार देने चाहिए। इस तरह का परिवर्तन सही नहीं है। जिलों में प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारी चिकित्सकों का शोषण और अपमान कर रहे हैं।
प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. सचिन वैश्य का कहना है कि प्रदेश भर में 24 घंटे सेवाएं देने के लिए 33 हजार विशेषज्ञ चिकित्सक और 14 हजार एमबीबीएस चिकित्सकों चाहिए। गैर चिकित्सक बिजनेसमैन मैनेजर को प्रशासनिक दायित्व सौंपकर इस कमी को दूर नहीं किया जा सकता है। संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि चिकित्सकों की उपयोगिता के कारण उनकी सेवानिवृत्ति आयु को दो बार बढ़ाया गया है। गौरतलब है कि सरकार ने चिकित्सकों के सेवानिवृत्ति की आयु 58 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी है, वहीं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को सेवा से हटा दिया है।
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‘सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं’
डॉ. अमित सिंह का कहना है कि हमें आवश्यक सेवाओं के रूप में संदर्भित किया जाता है, लेकिन जब सुविधाओं और प्राथमिकता की बात आती है तो हम सीढ़ी के सबसे आखिरी पायदान पर खड़े नजर आते हैं। कोरोना से मरने वाले डॉक्टरों के सिर्फ एक वर्ग को मुआवजा दिया गया जबकि पैरा मेडिकल में अब तक शायद ही किसी को मुआवजा दिया गया है। शहीद डॉक्टरों के परिवार आज भी आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
चिकित्सक आखिरकार प्रशासनिक पद क्यों नहीं छोडऩा चाहते? इस सवाल पर खुलकर कोई बात करने को तैयार नहीं है। लेकिन, नाम न छापने की शर्त पर कई चिकित्सक बताते हैं कि दरअसल, ये पद काफी मलाईदार होता है और हर डॉक्टर को उम्मीद होती है कि एक दिन वह इस पर काबिज होगा। लेकिन, प्रशासनिक पदों पर गैर-चिकित्सकों की नियुक्ति के बाद इनका मतलब सिर्फ इलाज से ही रह जाएगा।
पेशे से चिकित्सक व समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. आशुतोष वर्मा पटेल ने कहा कि सरकार अपनी नाकामी का ठीकरा डॉक्टरों को फोड़ना चाहती है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक पद पर एक चिकित्सक की नियुक्ति ही सही है, क्योंकि एक चिकित्सक ही जान सकता है कि ऑपरेशन के बाद डॉक्टर को क्या चाहिए। कितनी रेस्ट मिलेगी। कौन सी मशीन चाहिए न कि कोई गूगल पढ़कर इसे समझ सकता है। उन्होंने कहा कि चिकित्सकीय व्यवस्था कोई कारपोरेट कंपनी नहीं, जिसमें गोल टार्गेट किए जाएंगे। यह सीधे लोगों की जिंदगी से जुड़े हुआ मुद्दा है। अगर एमबीए वाले ही सब कर सकते हैं तो सरकार में नेताओं की जरूरत नहीं है।