अस्तित्व का संकट यूपी में कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 जोरदार ढंग से लड़ने के बावजूद कांग्रेस ने सिर्फ दो सीटों पर अपना परचम लहराया। और अगर सही ढंग से कांग्रेस जनता के बीच अपने को नहीं स्थापति कर सकी तो वह दिन दूर नहीं जब यूपी विधान परिषद की तरह, यूपी विधानसभा में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाए। कांग्रेस के लिए इस वक्त यूपी सत्ता में वापसी की डगर बड़ी कठिन है।
यह भी पढ़ें – चित्रकूट में बनेगा यूपी का चौथा टाइगर रिजर्व, वो राज जानें आखिर बन क्यों रहा है पहली बार जब कोई प्रतिनिधि नहीं होगा यूपी विधान परिषद में ऐसा पहली बार होगा जब कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि सदन में नहीं होगा। दीपक सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यूपी का उच्च सदन कांग्रेस मुक्त हो जाएगा। यूपी में कांग्रेस का साल 1989 तक पूरी तरह वर्चस्व था। पिछले 33 साल में कांग्रेस पार्टी की इस दशा की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
यह भी पढ़ें – यूपी के इन सात जिलों को मिलेगी सीएनजी-पीएनजी की सुविधा, सीएनजी वाहन चालकों को मिलेगी राहत विधानसभा में सिर्फ 2 विधायक यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस महज दो सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस के सिर्फ दो ही उम्मीदवार विधानसभा पहुंच पाए। महराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी और रामपुर खास से आराधना मिश्रा मोना। अब कांग्रेस के सामने विधानसभा चुनाव 2027 एक बड़ी चुनौती होगी।
मोती लाल नेहरू कांग्रेस के पहले सदस्य उत्तर प्रदेश विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब 9 सदस्य थे। 1909 में सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे। मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। 1920 में उन्होंने सदस्यता त्याग दी थी। तब यूपी को संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था।