नवरात्र पर काली मां के इस मंदिर में उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब, अनोखा है यहां का इतिहास
देखें वीडियो… चन्द्रिका देवी मंदिर के पास ही महीसागर तीर्थ है। जनश्रुति है कि अश्वमेध यज्ञ के समय यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, जिसे क्षेत्र के तत्कालीन राजा हंशध्वज ने रोक लिया था। इसके बाद उन्हें युधिष्ठिर की सेना से युद्ध करना पड़ा। हंशध्वज ने घोषणा की थी, सभी को युद्ध में भाग लेना होगा, लेकिन खुद उनका पुत्र सुधवना मंदिर में पूजा करता रहा, जिसके कारण उसे खौलते तेल में डाल दिया गया, लेकिन मां चंद्रिका देवी की कृपा से उसके शरीर पर कोई आंच नहीं आई थी। स्कंद पुराण के अनुसार, इस तीर्थ में घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने तप किया था। आज भी करोड़ों भक्त यहां महारथी बर्बरीक की पूजा-आराधना करते हैं। यह तीर्थ मनोकामना पूर्ति व पापों को नाश करने वाला माना जाता है।
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दर्शनीय स्थल
सिद्धपीठ चंद्रिका देवी मंदिर में मां की पिंडियों के बाईं ओर दुर्गा जी हनुमान जी एवं सरस्वती जी के विग्रहों की स्थापना है। देवी धाम में एक विशाल हवन कुंड, यज्ञशाला, चन्द्रिका देवी दरबार, बर्बरीक द्वार, सुधनवा कुण्ड, महीसागर संगम तीर्थ के घाट आदि दर्शनीय स्थल हैं। चंद्रिका देवी मंदिर देश-प्रदेश के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।
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खूबसूरती में खो जाएंगे
पर्यटन के लिहाज से चंद्रिका देवी का अपना अलग महत्व है। यह स्थान तीन तरफ से गोमती नदी से घिरा और जंगल के बीचोबीच बसे होने के कारण यहां की खूबसूरती आपके मन को मोह लेगी। शहर के शोर-शराबे से दूर मां के इस मंदिर परिसर में शांति का वातावरण आपको बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करेगा।