लखनऊ

आखिर बीएसपी सुप्रीमो मायावती को क्यों कहा जाता है यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशन

UP Political Tales BSP Leader Mayawati Called Perfect Women Politician- पूर्व मुख्यमंत्री के किस्सों की सीरीज में पेश है उस महिला की कहानी जिन्हें यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशियन माना जाता है। बात है बसपा सुप्रीमो मायावती की जिन्हें आयरन लेडी के नाम से भी जाना जाता है।

लखनऊNov 15, 2021 / 09:07 am

Karishma Lalwani

UP Political Tales BSP Leader Mayawati Called Perfect Women Politician

लखनऊ. UP Political Tales BSP Leader Mayawati Called Perfect Women Politician. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक है। अगले वर्ष नई सरकार बनेगी और यूपी को नया मुख्यमंत्री मिलेगा। इसी क्रम में पत्रिका उत्तर प्रदेश अपने पाठकों के लिए उप्र के पूर्व मुख्यमंत्रियों से जुड़े कुछ किस्से लेकर आया है जिसमें उनके अब तक के कार्यकाल व राजनीतिक करियर का बातें बताई जाएंगी। पूर्व मुख्यमंत्री के किस्सों की सीरीज में पेश है उस महिला की कहानी जिन्हें यूपी की परफेक्ट वीमेन पॉलिटिशियन माना जाता है। बात है बसपा सुप्रीमो मायावती की जिन्हें यूपी की सियासत में ‘बहनजी’ के नाम से भी जाना जाता है। मायावती प्रदेश के इतिहास में चार बार मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचने वाली नेता हैं। इसी के साथ वह देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री भी हैं।
राजनीति में आने से पहले मायावती की जीवन

15 जनवरी, 1956 को गौतम बुद्ध नगर के बादलपुर गांव में मायावती का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता दूरसंचार विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात थे। मां रामरती ने अनपढ़ होने के बाद भी बच्‍चों को शिक्षा दिलाई। इनके छह भाई और दो बहने हैं। दलित परिवार से आते हुए भी उनके परिवार में शिक्षा को अधिक महत्व दिया गया। मायावती बचपन में आईएएस अफसर बनना चाहती थीं लेकिन किस्मत को कुछ ही मंजूर था। राजनीति में रुझान आया और कांशीराम से संपर्क में आने के बाद उन्होंने बसपा ज्वाइन कर ली।
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1984 में बहुजन समाज पार्टी के गठन के बाद मायावती शिक्षिका की नौकरी छोड़ कर पूर्ण कालिक कार्यकर्ता बन गईं। उसी साल उन्होंने मुज्ज़फरनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से अपना पहला निर्दल चुनाव अभियान आरंभ किया और खूब प्रचार भी किया, लेकिन उन्हें अख्तर हुसैन से हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में मायावती ने 44,445 वोटों के साथ तीसरा स्थान प्राप्त किया। इसके बाद 1985 में बिजनौर के उपचुनाव में मायावती का वोट बैंक तो बढ़ा लेकिन यहां भी तीसरे स्थान पर ही रहीं। बसपा सुप्रीमो राजनीति में धीरे-धीरे अपने पांव पसार रही थीं। 1987 में हरिद्वार सीट से फिर चुनाव लड़ा। वह 1,25,399 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। मायावती को लगातार हार मिल रही थी लेकिन 1989 का चुनाव उनके लिए लकी साबित हुआ। इस चुनाव में यूपी की बिजनौर सीट से मायावती ने पहली बार जीत का स्वाद चखा। मायावती जब भी सत्ता में रहीं विरोधी दलों के लिए मुसीबत से कम नहीं रहीं।
देश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री

1993 में यूपी का विधानसभा चुनाव बसपा और मायावती के लिए किस्मत पलटने वाला साबित हुआ। इस चुनाव में पहली बार सपा से गठबंधन पर बसपा ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की। बाद में 1995 में एसपी के साथ गठबंधन तोड़ बीजेपी और अन्य दलों के समर्थन से मुख्यमंत्री बनीं। तब उनका कार्यकाल मजह चार महीने का था। दूसरी बार 1997 और तीसरी बार 2002 में मुख्यमंत्री बनीं और तब उनकी पार्टी बीएसपी का बीजेपी के साथ गठबंधन था।
मायावती की सोशल इंजीनियरिंग

2007 में मायावती ने ब्राह्मण नेताओं को पार्टी से जोड़ा, उन्हें प्रमोट किया और टिकट बांटे। सोशल इंजीनियरिंग के तहत 2007 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने ‘सर्वजन हिताय’, ‘सर्वजन सुखाय’ और ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है’ का नारा दिया। इसी का नतीजा था कि बीएसपी ने पूर्ण बहुमत से जीत हासिल की और मायावती मुख्यमंत्री बनीं। 2007 के विधानसभा चुनाव में मिली जीत के अपने फॉर्मूले वे यूपी विधानसभा 2022 के चुनाव में भी आजमाने की ठानी है। दलित और ब्राह्मण मतदाता को साध कर मायावती एक बार फिर यह चुनाव जीतने में हैं।
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