UP Pan Masala Business: यूपी में पान-मसाला उत्पादन घटने से राजस्व पर पड़ेगा असर, पूरे देश के उद्योगों पर भी होगा प्रभाव
UP Pan Masala Business: उत्तर प्रदेश में पान-मसाला उत्पादन में गिरावट के कारण राज्य और केंद्र सरकार को मिलने वाले टैक्स में कमी आएगी, जिससे देश के उद्योगों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
UP Pan Masala Business: उत्तर प्रदेश में पान-मसाला उत्पादन में गिरावट के कारण जीएसटी और सेस की कमाई में भारी कमी होने की संभावना है, जो राज्य और केंद्र सरकार के राजस्व को प्रभावित कर सकता है। इस गिरावट का असर न केवल राज्य के खुदरा बाजारों में दिख रहा है, बल्कि पूरे देश के उद्योगों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। लखनऊ और कानपुर की पान-मसाला फैक्ट्रियों में उत्पादन में 90 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है, जिसका असर इन उत्पादों के खुदरा विक्रेताओं पर पड़ा है।
कानपुर में पान-मसाला उत्पादक संघ के जिलाध्यक्ष अवधेश कुमार बाजपेई ने इस मुद्दे को उठाते हुए भाजपा सांसद रमेश अवस्थी को एक ज्ञापन सौंपा है। उनका कहना है कि पान-मसाला उत्पादन में कमी के कारण खुदरा दुकानदारों को प्रति पाउच ₹1 की वृद्धि करनी पड़ी, जिससे पान का ₹5 वाला पैक ₹6 में बिकने लगा।
मामले की जड़ में क्या है?
उत्तर प्रदेश में पान-मसाला फैक्ट्रियों के बाहर जीएसटी विभाग की 60 टीमें तैनात की गई हैं। इसके कारण कुछ आपूर्तिकर्ताओं द्वारा सुपाड़ी की आपूर्ति में कमी आई है, जिससे उत्पादन में गिरावट आई है। असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य भी यूपी की फैक्ट्रियों को सुपाड़ी की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ है।
उद्योगों पर प्रभाव
पान-मसाला पर केंद्र सरकार को मिलने वाला 32% सेस सीधे देश के विकास को प्रभावित करता है, जो अन्य राज्यों के विकास के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है। इसके अलावा, राज्य और केंद्र का जीएसटी 14-14% है, जिससे राज्य सरकार को भी राजस्व प्राप्त होता है। इस गिरावट के कारण जीएसटी का संग्रहण घटेगा, जिससे राज्य और केंद्र दोनों को नुकसान होगा।
पान-मसाला कारोबार से केंद्र और राज्य को बड़ा राजस्व मिलता है, और इसका उत्पादन घटने से इस क्षेत्र पर बुरा असर पड़ेगा। इसके साथ ही यूपी सरकार के निवेश आकर्षण अभियान को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि उद्योगीकरण और उत्पादन में गिरावट से राज्य की आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है।
निवेशकों के लिए चुनौती
पान-मसाला पर जीएसटी और सेस के संग्रह में कमी के कारण उद्योगों को नए निवेश लाने में मुश्किल हो सकती है। कारोबारियों का कहना है कि पान-मसाला पर एमआरपी के आधार पर 32 प्रतिशत सेस का भुगतान करना पड़ता है, जो अब कम हो सकता है। इसके अलावा, सरकार के प्रयासों के बावजूद व्यापारियों को ‘चोर’ साबित करने की प्रक्रिया ने भी माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।
इस समस्या के समाधान के लिए राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर एक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है, ताकि पान-मसाला उद्योग की गिरावट को रोका जा सके और इसके प्रभाव को कम किया जा सके। अगर यह स्थिति इसी तरह जारी रही, तो इससे न केवल राज्य के राजस्व में कमी आएगी, बल्कि पूरे देश के औद्योगिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
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