कुमाऊं विश्वविद्यालय के शोध में हिमालयी रीजन में जल स्रोतों के आसपास मौजूद पौधों की जड़ में एंटीवेक्टिरियल कवक मिले हैं। सामान्य तौर पर पानी के समीप उगने वाले पौधे समय से पहले ही सड़-गल जाते हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में ऐसे पौधों की जड़ों में लगने वाले फफूंद में औषधीय गुण पाए गए हैं।
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कृषि के क्षेत्र में उपयोगी साबित होगा शोधविशेषज्ञों के अनुसार यह शोध कृषि के क्षेत्र में भी उपयोगी साबित होने वाला है। शोध में कवकों की उपयोगिता को उजागर किया गया है। यह कवक हानिकारक नहीं बल्कि उपयोगी साबित हुए हैं। इसे मिट्टी में मिलाकर कृषि के क्षेत्र में भूमि की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है। जबकि इससे जैविक खाद का उदपादन भी किया जा सकेगा।
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कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर स्थित वनस्पति विज्ञान विभाग में एक्सप्लोरेशन ऑफ रूट एडोफिटिक अक्वेटिक हाइफोमाइसेट्स इन टेम्परेट हिमालया एंड असेसमेंट ऑफ देयर बायोएक्टिविटी पोटेंशियल विषय पर शोध कार्य कर चुकी डॉ. अंजलि कोरंगा के रिसर्च परिणाम में कई तथ्य सामने आए हैं। छह साल के गहन अध्ययन के बाद निकला यह परिणाम
हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले जल स्रोतों के जलीय कवकों पर छह वर्षो तक गहन अध्ययन करने वाली शोधार्थी डॉ. अंजलि कोरंगा की रिसर्च में यह खुलासा हुआ है। जबकि उन्होंने दो नए कवकों की खोज भी की है। इसमें ट्राईक्लेडियम इंडिकम एवं प्लूरोपेडियम ट्राइक्लाडियोइड्स शामिल हैं।
हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले जल स्रोतों के जलीय कवकों पर छह वर्षो तक गहन अध्ययन करने वाली शोधार्थी डॉ. अंजलि कोरंगा की रिसर्च में यह खुलासा हुआ है। जबकि उन्होंने दो नए कवकों की खोज भी की है। इसमें ट्राईक्लेडियम इंडिकम एवं प्लूरोपेडियम ट्राइक्लाडियोइड्स शामिल हैं।
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2018 से 2023 तक लगातार शोध पर किया कामअंजलि ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2018 से 2023 तक लगातार इस विषय में काम किया। हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले स्रोतों के जलीय कवकों के शोध में पाया गया कि जलीय कवक विशेष रूप से जड़ो में अंत:जीवी के रूप में पाए जाते हैं। जलीय कवक की पदपों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध को मिली सराहना
डॉ. अंजलि के शोध में यह प्रमाणित हुआ है कि ये अंतःजीवी जलीय कवक न केवल पौधों के स्वास्थ्य के लिए बल्कि मनुष्यों में एंटीऑक्सीडेंट के लिए भी कारगर साबित हुए हैं। उनके इस शोधकार्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया है। यह कवक जीवाणुनाशक, कवकरोधी एवं खनिज घुलनशीलता में कारगर साबित हुए हैं। जोकि आने वाले समय में शोधार्थियों के लिए अध्ययन का रास्ता खोलेंगे।
डॉ. अंजलि के शोध में यह प्रमाणित हुआ है कि ये अंतःजीवी जलीय कवक न केवल पौधों के स्वास्थ्य के लिए बल्कि मनुष्यों में एंटीऑक्सीडेंट के लिए भी कारगर साबित हुए हैं। उनके इस शोधकार्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी सराहा गया है। यह कवक जीवाणुनाशक, कवकरोधी एवं खनिज घुलनशीलता में कारगर साबित हुए हैं। जोकि आने वाले समय में शोधार्थियों के लिए अध्ययन का रास्ता खोलेंगे।
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रिसर्च के नए आयाम स्थापित होंगेडॉ. अंजलि की ओर से जलीय पौधों के जड़ों में लगने वाले फफूंद पर किए गए शोध के बाद अब कई नए सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि आगामी समय में इस क्षेत्र में शोध के नए आयाम स्थापित होंगे। नए खोजे गए कवकों का उपयोग तथा अन्य तरह की फफूंद को दवाइयों के रूप में उपयोग किया जाएगा। इसको लेकर स्पष्ट कार्य योजना आने वाले रिसर्च परिणाम ही स्थापित करेंगे।
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जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में मददगार हैं ये कवककुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में वनस्पति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और संकायाध्यक्ष प्रो. एससी सती ने बताया कि हिमालयी रीजन में पहली बार दो नए कवक खोजे गए हैं। साथ ही रिसर्च में किया गया अंत:जीवी जलीय कवक का कार्य अत्यंत उपयोगी है। जिससे आने वाले समय में भूमि की उर्वरता जैविक खाद के रूप में बढ़ाने में काफी कारगर सिद्ध होंगे।