इसके बावजूद समय-समय पर अपने कारनामों से यह चर्चा में आ ही जाते हैं। आइए एक-एक करके इनके गैंगस्टर बनने की कहानी बताते हैं। श्री प्रकाश शुक्ला। IMAGE CREDIT: श्री प्रकाश शुक्ला-बहन को छेड़ने वाले का मर्डर करके बना गैंगस्टर
साल 1973। गोरखपुर के मामखोर गांव में एक सरकारी टीचर के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा श्रीप्रकाश शुक्ल। 20 साल की उम्र तक वो लड़का स्कूल जाता, घर पर दोस्तों के साथ खेलता, परिवार के साथ रहकर नॉर्मल जिंदगी जी रहा था। पर अब धीरे-धीरे लड़के का मन पढ़ाई छोड़कर रंगबाजी में लगने लगा।
साल 1973। गोरखपुर के मामखोर गांव में एक सरकारी टीचर के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा श्रीप्रकाश शुक्ल। 20 साल की उम्र तक वो लड़का स्कूल जाता, घर पर दोस्तों के साथ खेलता, परिवार के साथ रहकर नॉर्मल जिंदगी जी रहा था। पर अब धीरे-धीरे लड़के का मन पढ़ाई छोड़कर रंगबाजी में लगने लगा।
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साल 1993। एक 16 साल की लड़की स्कूल से घर वापस जा रही थी। रास्ते में राकेश तिवारी नाम के एक आदमी ने उसके साथ छेड़छाड़ की। लड़की रोते हुए घर पहुंची और पूरी बात अपने पिता को बताने लगी। ये लड़की श्रीप्रकाश की बहन थी। जब वो पूरी बात अपने पिता को बता रही थी, उसी वक्त श्रीप्रकाश को भी अपनी बहन के साथ हुई बदतमीजी का पता चल गया। श्रीप्रकाश बिना कुछ सोचे समझे गया और राकेश तिवारी के सीने में गोली उतार दी। राकेश की मौत हो गई। इसी वाकये से शुरू हुई एक आम लड़के की गैंगस्टर बनने की कहानी। राकेश का मर्डर करके श्रीप्रकाश अंडरग्राउंड हो गया। अब उसकी तलाश दो लोग कर रहे थे।
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पहली थी पुलिस और दूसरा गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी। पुलिस श्रीप्रकाश को सजा देने के लिए खोज रही थी और हरिशंकर उसे इनाम देने के लिए। इसके बाद 22 सितम्बर 1998 को यूपी एसटीएफ ने श्री प्रकाश शुक्ला का एनकाउंटर कर दिया।वाराणसी के छोटे से गांव का रहने वाला 17 वर्षीय सुभाष सिंह ने अपराध की दुनिया में उस वक्त कदम रखा था, जब वो 90 के दशक में मुम्बई काम की तलाश में पहुंचा। संयोग से उन दिनों एक ऐसा वाकया हो गया, जिस ने सुभाष की जिदंगी बदल दी। विरार इलाके में पावभाजी का ठेला लगाने वाले उस के एक दोस्त से हफ्तावसूली को ले कर मराठी गुंडों का झगड़ा हो गया।
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सुभाष कदकाठी और ताकत में ऐसा था कि किसी को भी पहली नजर में डरा देता था. सुभाष ने उस दिन पहली बार उन मराठी गुंडों की जम कर पिटाई कर दी। अंजाम ये हुआ कि लोकल मराठी लड़कों ने पुलिस में अपनी सेटिंग के बूते सुभाष के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। पुलिस ने सुभाष को उठा लिया और जम कर पिटाई कर के उसे जेल भेज दिया। कुछ दिन बाद उस की जमानत तो हो गई, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी पुलिस ने सुभाष को परेशान करना नहीं छोड़ा। लोकल मराठी लड़कों को स्थानीय नेताओं की शह थी, जिन के दबाव में पुलिस आए दिन सुभाष को झूठी शिकायत के आधार पर पकड़ लाती और परेशान करती, सुभाष कुछ ही महीनों में मायानगरी के बारे में समझ गया था कि अगर यहां रहना है तो दब कर नहीं, बल्कि लोगों को दबा कर रहना होगा।
यह भी पढ़ें : STF की इस टीम ने लोकेशन ट्रेस कर असद को किया ढेर, जानिए टीम को किसने किया लीड फिर वहीं से सुभाष ठाकुर की एंट्री जुर्म की दुनिया में हुई। इसके बाद सुभाष ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो एक बाद एक ताबड़तोड़ वारदात को अंजाम देता गया। इसी वजह से जुर्म की काली दुनिया में सुभाष ठाकुर के नाम का दबदबा भी बहुत तेजी से बढ़ता गया। मुंबई में लोग सुभाष ठाकुर के नाम से कांपने लगे थे। सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा को यूपी का सबसे बड़ा माफिया डॉन कहा जाता है।
उसके खिलाफ 50 से ज्यादा संगीन मामले चल रहे हैं। उसने लंबी दाढ़ी रख ली है। उसका हुलिया बाबाओं जैसा हो गया है। इसीलिए लोग उसे बाबा कहकर बुलाते हैं। बताया जाता है कि आज भी जेल में सुभाष ठाकुर दरबार लगाता है। उसका कारोबार यूपी से लेकर मुम्बई तक फैला हुआ है। इस समय सुभाष यूपी की फतेहगढ़ जेल में बंद है।
यूपी में कई बाहुबली हुए, लेकिन कुख्यात सुनील राठी को यूपी-उत्तराखंड का डॉन नंबर वन कहा गया। सुनील राठी पर एक अन्य कुख्यात मुन्ना बजरंगी को जेल के अंदर मारने का आरोप है। जेलें बदलने के बाद भी कुख्यात सुनील राठी अपराध की दुनिया में धमक बढ़ाने के लिए जाना जाता है।
पश्चिमी यूपी और उत्तराखंड के अलावा उसने दिल्ली में वारदातों को अंजाम दिया है। कुख्यात राठी के जरायम की शुरूआत अपने पिता की हत्या के बाद हुई। बताया जाता है कि ज़रायम की दुनिया में आए इस बाहुबली किसी दूसरे का नहीं बल्कि अपनी ही मां का साथ मिला था।
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90 का दशक था। पश्चिमी यूपी का बागपत ज़िला खेती-किसानी के लिए जाना जाता था। यहां अपराधियों की राजनीतिक खेमेबाजी से गैंगवॉर की घटनाएं बढ़ने लगीं। ऐसे ही माहौल में टिकरी के चेयरमैन बने सुनील राठी के पिता नरेश राठी। इलाक़े के बड़े किसान और राजनीतिक शख़्सियत। पारिवारिक रंजिश में साल 1999 में नरेश राठी की हत्या कर दी गई। बताया जाता है कि यह चुनावी रंजिश थी। आरोप लगा साहब सिंह राठी और मोहकम सिंह राठी पर। बस यहीं से सुनील की ज़िंदगी बदल गई। उसने पिता की हत्या का बदला लेने की कसम खायी।
कुछ स्थानीय युवाओं के साथ मिलकर एक गैंग बनाया। पिता की हत्या के एक साल बाद साल 2000 में उसने हत्या के आरोपियों को मौत के घाट उतार दिया। सुनील पर एक के बाद एक, चार हत्याओं का आरोप लगा। पूरे प्रदेश में चर्चा में आ गया उसका नाम।
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इस चौहरे हत्याकांड की पूरे प्रदेश में चर्चा हुई थी। इसके बाद वह बागपत से फरार हो गया। बागपत से भागकर वह दिल्ली में छिप गया। लेकिन, वह चुप बैठने वाला नहीं था। उसने दिल्ली के ही एक शोरूम में डकैती डाली और अपने साथियों के साथ वहां के तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद दिल्ली भी उसका सुरक्षित ठिकाना नहीं रह गया था। हरिद्वार उन दिनों यूपी का ही हिस्सा हुआ करता था। राठी हरिद्वार चला गया और कुछ दिनों तक वहीं छिपा रहा। मुन्ना बजरंगी की हत्या कर बढ़ाया दबदबा
सुनील राठी का नाम साल 2018 में एक बार फिर सुर्खियों में आया। उस पर आरोप लगा यूपी के बड़े डॉन मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या का। बताया जाता है कि बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी और सुनील राठी, दोनों बंद थे। आरोप है कि राठी ने बजरंगी की बैरक में घुसकर उसका मर्डर किया।
सुनील राठी का नाम साल 2018 में एक बार फिर सुर्खियों में आया। उस पर आरोप लगा यूपी के बड़े डॉन मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या का। बताया जाता है कि बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी और सुनील राठी, दोनों बंद थे। आरोप है कि राठी ने बजरंगी की बैरक में घुसकर उसका मर्डर किया।
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