लखनऊ. यूपी के अवैध धर्मांतरण (Religion Conversion) को रोकने के लिए बने कानून को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है व इसपर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दिल्ली के वकील टविशाल ठाकरे, अभय सिंह यादव और प्रणवेश ने इस कानून के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा कि कानून मनमाना है। “लव जिहाद” के नाम पर बने इन कानून को निरर्थक और शून्य घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि “वे संविधान के मूल ढांचे को भंग करते हैं।” यह कानून बोलने और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं ने इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट से अवैध व असंवैधानिक करार देने की मांग की है। याची ने यह दलील दी कि हमारे संविधान ने भारत के नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए हैं जिसमें अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़े समुदायों के अधिकार भी शामिल हैं। अपने जीवन साथी का चयन करने का किसी भी व्यक्ति को अधिकार है।
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याचिकाकर्ता ने कहा है कि अध्यादेश का दुरुपयोग किसी को भी गलत तरीके से फंसाने के लिए किया जाएगा। अध्यादेश को हथियार बनाकर समाज में बुरे तत्व किसी को भी गलत तरीके से फंसा सकते हैं। इस कानून के इस्तेमाल से उनके साथ घोर अन्याय होगा। कानून के लागू होने से जनता को बड़े पैमाने पर नुकसान होगा और समाज में अराजक स्थिति पैदा होगी।
पास हुआ था अध्यादेश-
उत्तर प्रदेश में लव-जिहाद व धर्मांतरण की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सीएम योगी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 को मंजूरी दी गई थी। इस पर राज्यपाल की मोहर लगने के बाद कानून बन चुका है। कानून में कड़े प्रावधान है। कानून के तहत छल-कपट व जबरन धर्मांतरण के करने के मामले में दोषी को एक से दस वर्ष तक की सजा हो सकती है। खासकर किसी नाबालिग लड़की या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिला का छल से या जबरन धर्मांतरण कराने के मामले में दोषी को तीन से दस साल तक की सजा हो सकती है।