लखनऊ. प्रदेश के समस्त धार्मिक स्थलों की देखरेख व उनके बेहतर संचालन के लिए योगी सरकार जल्द ही अध्यादेश लाने की तैयारी में हैं। इसके अंतर्गत सभी धार्मिक स्थलों का पंजीकरण अनिवार्य होगा। चढ़ावे व चंदा का दुरुपयोग व धार्मिक स्थलों पर हक जताने जैसे विवादों का अंत होगा। अध्यादेश आने के बाद यूपी सरकार सभी बड़े मंदिर, मस्जिद व अन्य धार्मित स्थलों का हिसाब रखेगी। मंगलवार शाम को हुई बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इससे जुड़ा प्रेजेंटेशन देखा। उन्होंने इसमें कुछ संशोधन व अन्य लोगों से भी विचार विमर्श करने की सलाह दी। अध्यादेश लाने के पीछे सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को आधार बनाया गया है जिसमें कोर्ट ने श्रद्धालुओं की सुविधा व धर्म स्थलों के रखरखाव आदि की व्यवस्था के लिए निर्देश दिए थे। जल्द ही कैबिनेट बैठक में इसका संशोधित प्रस्ताव पेश होगा। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार धर्मार्थ कार्य विभाग निदेशालय गठित कर रही है, जिसका फैसला लिया जा चुका है। इससे काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण-सुंदरीकरण योजना, काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र परिषद अधिनियम, कैलाश मानसरोवर भवन गाजियाबाद का संचालन व प्रबंधन होगा।
ये भी पढ़ें- यूपी के हर छोटे-बड़े उद्योग को ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से मिलेगा लाभ- सीएम योगी अन्य राज्यों के कानूनों का होगा अध्य्यन- यूपी सरकार प्रदेश के मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों के पंजीकरण व संचालन के लिए नियम-कायदे तय करने पर विचार कर रही है। मंगलवार को धर्मार्थ कार्य विभाग ने धार्मिक स्थल रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेश्न अध्यादेश के प्रारूप का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने प्रेजेंटेशन पेश किया। जिसे देखने के उपरांत उन्होंने इसमें कुछ जरूरी सुधार के साथ विधि विशेषज्ञों से राय लेने की सलाह दी। यूपी कैबिनेट बैठक में यह अध्यादेश लाया जाएगा, उससे पूर्व सरकार दूसरे अन्य राज्यों के कानूनों व प्रस्तावों का भी अध्य्यन कर रही है। जो नियम बनेगा व सर्वसमत्ति से बनेगा और लागू होगा। अध्यादेश आने के बाद सभी बड़े व प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों को पंजीकरण कराना अनिवार्य हो जाएगा।
ये भी पढ़ें- लव जिहाद कानून का एक महीनाः 51 गिरफ्तार, 49 को जेल, 14 केस दर्ज, देवरिया में आया पहला मामला चढ़ावे का होगा सदुपयोग- यूपी सरकार चाहती है कि धार्मिक स्थलों पर हक जताने जैसे विवाद खत्म हों और इनका बेहतर संचालन हो सके। इसके लिए जो अध्यादेश लाया जाएगा, उसके अंतर्गत नियमावली बनाई जाएगी, जिसका पालन करना अनिवार्य होगा। इन संस्थानों के संचालन, सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था होगी। यही नहीं इन स्थलों पर आने वाले चढ़ावे व चंदा का सदुपयोग सुनिश्चित किया जाएगा। धार्मिक स्थलों को संचालन समिति के बारे में पूर्ण जानकारी भी उपलब्ध करानी होगी।
संतों ने जताया विरोध-
अध्यादेश लाए जाने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया है। साधु-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस अध्यादेश का विरोध करते हुए कहा है कि राज्य के सभी मठ व मंदिर सुरक्षित हैं। उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने बताया कि यदि धार्मिक स्थलों के लिए कोई अध्यादेश लाना व इसके लिए कोई निदेशालय गठन करना अनिवार्य है तो इससे पहले संतों की भी राय ली जानी चाहिए। उनका मानना है कि किसी भी तरीके से साधु-संतों को राज्य सरकार व अधिकारियों के अधीन लाना उचित नहीं होगा। प्रदेश में पहले से जो व्यवस्था चल रही है वह उचित है। हालांकि नरेंद्र गिरी ने यह भी विश्वास जताया कि सूबे के मुखिया सीएम योगी आदित्यनाथ खुद भी एक संत हैं और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं, इसलिए वे जो भी कदम उठाएंगे सोच समझकर ही उठाएंगे।
अध्यादेश लाए जाने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया है। साधु-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस अध्यादेश का विरोध करते हुए कहा है कि राज्य के सभी मठ व मंदिर सुरक्षित हैं। उन्हें किसी प्रकार का खतरा नहीं हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने बताया कि यदि धार्मिक स्थलों के लिए कोई अध्यादेश लाना व इसके लिए कोई निदेशालय गठन करना अनिवार्य है तो इससे पहले संतों की भी राय ली जानी चाहिए। उनका मानना है कि किसी भी तरीके से साधु-संतों को राज्य सरकार व अधिकारियों के अधीन लाना उचित नहीं होगा। प्रदेश में पहले से जो व्यवस्था चल रही है वह उचित है। हालांकि नरेंद्र गिरी ने यह भी विश्वास जताया कि सूबे के मुखिया सीएम योगी आदित्यनाथ खुद भी एक संत हैं और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं, इसलिए वे जो भी कदम उठाएंगे सोच समझकर ही उठाएंगे।