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अग्रिम जमानत से जुड़ी अर्जी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सत्र न्यायालय में दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट का कहना है कि अग्रिम जमानत पर सुनवाई का अधिकार हाई कोर्ट व सत्र न्यायालय दोनों को है। अत: अर्जी सत्र न्यायालय में दाखिल की जाए। इसके बाद वह हाई कोर्ट आ सकती है। कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत के लिए सीधे हाई कोर्ट आने के बाद वादकारी को सत्र न्यायालय जाने का अवसर समाप्त हो जाएगा। यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने नोएडा के प्रेम चौहान की अग्रिम जमानत को लेकर दाखिल की गई अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने अर्जी को वापस करते हुए उसे खारिज कर दिया है। याची के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में दुराचार के आरोप में प्राथमिकी दर्ज है। उसने अग्रिम जमानत पर रिहा होने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि पहले सत्र न्यायालय में अर्जी दाखिल की जाए। यदि सत्र न्यायालय में जमानत नहीं मिलती तो उसके बाद हाई कोर्ट आने का विकल्प खुला रहेगा।
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अग्रिम जमानत क्या है
अग्रिम जमानत न्यायालय का वह निर्देश है जिसमें किसी व्यक्ति को, उसके गिरफ्तार होने के पहले ही, जमानत दे दिया जाता है। भारत के आपराधिक कानून के अन्तर्गत, गैर जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार होने की आशंका में कोई भी व्यक्ति अग्रिम जमानत का आवेदन कर सकता है। अदालत सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकती है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 में दिया गया है। भारतीय विधि आयोग ने अपने 41वें प्रतिवेदन में इस प्राविधान को दण्ड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा की थी। अग्रिम जमानत का आवेदन करने पर अभियोग लगाने वाले को इस प्रकार की जमानत की अर्जी के बारे में सूचना दी जाती है ताकि वह चाहे तो न्यायालय में इस अग्रिम जमानत का विरोध कर सके।
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अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कैसे करें?
– पूर्व-गिरफ्तारी नोटिस / जमानत नोटिस और अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करने के लिए एक वकील से संपर्क करें,
– तथ्यों के आपके संस्करण का उल्लेख करते हुए एक अग्रिम जमानत का मसौदा तैयार करने के लिए वकील प्राप्त करें।
– उपयुक्त जिला अदालत में आवेदन करें।
– जब मामला सुनवाई के लिए आता है, तो यह सलाह दी जाती है कि आपका वकील एक विश्वसनीय व्यक्ति के साथ हो।