2007 में सर्व समाज का नारा देते हुए बसपा ने ब्राह्मण समुदाय को अपनी ओर जोड़ने का प्रदेश भर में अभियान चलाया था और उसमें उसे सफलता भी हासिल हुई थी। पार्टी ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों को उतारा था और 41 में उसे जीत मिली। और असल में इस सफलता के बाद ही राजनीतिक भाषा में इस प्रयोग को ‘सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया गया। जिसे दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने भी अपनाया और जिस अनुपात में ब्राह्मण अन्य पार्टियों से जुड़े, उस अनुपात में उन्हें सफलता भी मिली। 2012 व 2017 चुनाव इसके उदाहरण हैं। मायावती अब उसी सोशल इंजीनियरंग के फॉर्मूले को अपनाते हुए ‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी’ कर सत्ता में वापसी की कोशश कर रही हैं। आगामी दिनों में यूपी के सभी 18 मंडलों व बाद में सभी 75 जिलों में इस गोष्ठी के जरिए बसपा ब्राह्मणों को अपने पाले में करती दिखेगी। और दलित, ब्राह्मण, ओबीसी फॉर्मूले के साथ वह चुनावी मैदान में उतरेंगी।
विश्लेशक कहते हैं कि यूपी में ब्राह्मणों की संख्या की बात की जाए, तो वह करीब 11-12 फ़ीसदी है। वहीं कुछ जिले ऐसे है जहां करीब 20 फीसदा ब्राह्मण बसते हैं और उम्मीद्वार की जात या हार इन्हीं ब्राह्मण मतदाताओं के रुझान से तय होती है। पश्चिम यूपी में हाथरस, बुलंदशहर, मेरठ, अलीगढ़ है, तो पूर्वांचल व लखनऊ के आसपास के कई ऐसा जिले हैं जहां ब्राह्मण मतदाता है। माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो की फोकस उन्हीं जिलों व विधानसभाओं पर है। राजनीतिक विश्लेशकों का मानना है कि यदि बसपा को परंपरागत वोटर दलित, ओबीसी के साथ ही ब्राह्मणों का कुछ वोट मिल जाए तो 2022 में उसे अच्छा फायदा हो सकता है।
बीते साल भाजपा नेता विवेक तिवारी की हत्या व बाद में गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ज्यादातर ब्राह्मण भाजपा से नाराज है। कांग्रेस, सपा, आप सरीखे पार्टियों ने इसे मुद्दा भी बनाया व भाजपा सरकार पर ब्राह्मण विरोधी बताया। उस दौरान कांग्रेस में रहे जितिन प्रसाद ने ‘ब्राह्मण चेतना मंच’ नाम की संस्था बनाई, लेकिन अब वह खुद भाजपा में शामिल हो गए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ब्राह्मण नाराज तो है व वह विकल्प भी तलाश रहा है। सत्ता पक्ष व विपक्ष यह बखूबी समझता है। ऐसे में चाहे बसपा हो, सपा या फिर कांग्रेस, सभी पुरजोर कोशिश में हैं वे खुद को ब्राह्मण हितैषी साबित करें। वहीं भाजपा कताई नहीं चाहेगी कि ब्राह्मण वोट उससे छिटके।
बसपा ने अपने अभियान की शुरुआत अयोध्या से की है। इसके भी यदि निहितार्थ निकाले जाए तो बसपा सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड खेलना चाह रही है। जानकारों का कहना है कि धार्मिक दृष्टि से अयोध्या का हिंदू आबादी के एक बड़े हिस्से से जुड़ाव है और यूपी की राजनीति में इसका बड़ा महत्व भी है। जब मायावती के प्रतिद्वंदी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा वहां मंदिरों में दर्शन व साधु-संतों से आशीर्वाद लेकर हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं, तो मायावती भला कैसे पीछे रह सकती हैं।