बांदा जिला बुंदेलखंड का आर्थिक रूप से वह पिछड़ा हुआ जिला है जहां शिक्षा और जनसुविधाओं की कमी निरंतर महसूस की जाती रही है। वैसे बुंदेलखंड से लेकर मुंबई तक बांदा जिला अपने लठैतों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि यहां के निवासी लड़ाकू होते हैं, उनका लठैत होना बताता है कि वे साहसी होते हैं।
बांदा से शुरू होती है संपत पाल के गुलाबी गैंग की कहानी
यह कहानी है बांदा बिसंडा थाना क्षेत्र के तैरी गांव में जन्मी संपत पाल की। संपत पाल का जन्म 1960 में बांदा के एक गरीब परिवार में हुआ। 12 साल की उम्र में उनकी एक सब्जी बेचनेवाले से शादी कर दी गई। चित्रकूट के रॉलीपुर में अपने ससुराल में संपत की शुरुआती जिंदगी खासी मुश्किलों भरी रही। अपने घर से गांव के एक हरिजन परिवार को पीने के लिए पानी देने की घटना ने संपत का जीवन बदल कर रख दिया।
यह कहानी है बांदा बिसंडा थाना क्षेत्र के तैरी गांव में जन्मी संपत पाल की। संपत पाल का जन्म 1960 में बांदा के एक गरीब परिवार में हुआ। 12 साल की उम्र में उनकी एक सब्जी बेचनेवाले से शादी कर दी गई। चित्रकूट के रॉलीपुर में अपने ससुराल में संपत की शुरुआती जिंदगी खासी मुश्किलों भरी रही। अपने घर से गांव के एक हरिजन परिवार को पीने के लिए पानी देने की घटना ने संपत का जीवन बदल कर रख दिया।
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गैंग से चर्चा में आने के बाद संपत के पीछे पड़ गए गुंडेसंपत बताती हैं “एक बार बहुत भूख लगने पर मैंने घर के पुरुषों से पहले खाना खा लिया। इससे हमारी सास नाराज हो गईं। उन्होंने हमें बहुत डांटा। इस घटना के बाद कुछ अलग करने की ठान ली। इससे पहले संपत ने अपनी ससुरालवालों के अत्याचार का डटकर सामना किया। अपनी एक पड़ोसी महिला की रक्षा की। अपनी एक सहेली के परिवार वालों को सबक सिखाया…किंतु सबसे जोखिम भरा काम था गांव के दबंगों को चुनौती देना और उनके द्वारा सुपारी देकर पीछे लगाए गए गुंडों से स्वयं की रक्षा करना।
गैंग की लीडर संपत को चुकानी पड़ी बड़ी कीमत
गुलाबी गैंग की लीडर संपत पाल को कुछ अलग पहचान बनाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। गांव की पंचायत ने उन्हें गांव से बाहर कर दिया। संपत गांव छोड़कर परिवार के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई। इसके बाद उन्होंने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए एक गैंग बनाने की तैयारी शुरू की। मोहल्ले की महिलाओं से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है।
गुलाबी गैंग की लीडर संपत पाल को कुछ अलग पहचान बनाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। गांव की पंचायत ने उन्हें गांव से बाहर कर दिया। संपत गांव छोड़कर परिवार के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई। इसके बाद उन्होंने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए एक गैंग बनाने की तैयारी शुरू की। मोहल्ले की महिलाओं से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है।
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12 फरवरी 2006 को संपत ने बनाया संगठनपुरुष प्रधान विचारों के विरोध में आवाज उठाने के लिए संपत ने 12 फरवरी 2006 को संगठन बनाया। इसकी हर महिला गुलाबी साड़ी पहनती है। संपत बताती हैं “समानता के लिए हमने गुलाबी परिधान का चयन किया।” इसीलिए गैंग का नाम गुलाबी गैंग पड़ा।
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पहली बार उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से शुरू हुआ गुलाबी गैंग का यह सफर अब पूरे देश में फैल चुका है। यह गैंग महिलाओं पर होने वाली घरेलू की प्रतिक्रिया के रूप में उभरा। इसकी कमान संभालने वाली संपत पाल ने समूह में 18 से 60 साल तक की महिलाएं शामिल कीं। 2010 के बाद से यह गैंग काफी सक्रिय हो गया। इस समय गैंग में 11 लाख से अधिक सदस्य हैं। आइए अब जानते हैं वे तीन घटनाएं, जिससे चर्चा में आया गैंग 1. साल 2006 में गैंग की सुशीला नाम की सदस्य के पति प्यारेलाल को अंतर्रा पुलिस ने पकड़ा। 11 दिन बैठाए रही। संपत थाने पहुंचीं और 300 महिलाओं को कुत्तों के साथ बुलाया। महिलाओं की इतनी भीड़ देखकर पुलिस ने सुशीला के पति को छोड़ दिया गया। यहां गुलाबी गैंग की पहचान खुली।
2. साल 2008 में संपत गैंग की महिलाओं के साथ बिजली ऑफिस पहुंची। एसडीओ ने कहा- सरकार से बिजली मांगो। इसपर इस गैंग की महिलाओं ने एसडीओ को ही ऑफिस में बंद कर दिया। सूचना पर पहुंचे बड़े अधिकारियों ने काफी मिन्नतें की। इसके बाद गैंग ने एसडीओ को खोला।
3. साल 2017 में छिदवाडा गैंग प्रभारी पूर्णिमा ने स्टेशन पर शराब की आठ दुकानों से महिलाओं को होने वाली समस्या बताई। गैंग के साथ संपत छिंदवाड़ा पहुंचीं। जहां उन्होंने शराब की दुकानें हटवाने के लिए प्रदर्शन किया। इसके बाद प्रशासन को दुकानें हटवानी पड़ीं।
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