यह कहानी है बांदा बिसंडा थाना क्षेत्र के तैरी गांव में जन्मी संपत पाल की। संपत पाल का जन्म 1960 में बांदा के एक गरीब परिवार में हुआ। 12 साल की उम्र में उनकी एक सब्जी बेचनेवाले से शादी कर दी गई। चित्रकूट के रॉलीपुर में अपने ससुराल में संपत की शुरुआती जिंदगी खासी मुश्किलों भरी रही। अपने घर से गांव के एक हरिजन परिवार को पीने के लिए पानी देने की घटना ने संपत का जीवन बदल कर रख दिया।
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गैंग से चर्चा में आने के बाद संपत के पीछे पड़ गए गुंडेसंपत बताती हैं “एक बार बहुत भूख लगने पर मैंने घर के पुरुषों से पहले खाना खा लिया। इससे हमारी सास नाराज हो गईं। उन्होंने हमें बहुत डांटा। इस घटना के बाद कुछ अलग करने की ठान ली। इससे पहले संपत ने अपनी ससुरालवालों के अत्याचार का डटकर सामना किया। अपनी एक पड़ोसी महिला की रक्षा की। अपनी एक सहेली के परिवार वालों को सबक सिखाया…किंतु सबसे जोखिम भरा काम था गांव के दबंगों को चुनौती देना और उनके द्वारा सुपारी देकर पीछे लगाए गए गुंडों से स्वयं की रक्षा करना।
गुलाबी गैंग की लीडर संपत पाल को कुछ अलग पहचान बनाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी। गांव की पंचायत ने उन्हें गांव से बाहर कर दिया। संपत गांव छोड़कर परिवार के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई। इसके बाद उन्होंने महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए एक गैंग बनाने की तैयारी शुरू की। मोहल्ले की महिलाओं से शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है।
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12 फरवरी 2006 को संपत ने बनाया संगठनपुरुष प्रधान विचारों के विरोध में आवाज उठाने के लिए संपत ने 12 फरवरी 2006 को संगठन बनाया। इसकी हर महिला गुलाबी साड़ी पहनती है। संपत बताती हैं “समानता के लिए हमने गुलाबी परिधान का चयन किया।” इसीलिए गैंग का नाम गुलाबी गैंग पड़ा।