आयोजन के मुख्य अतिथि वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी ठाकुर प्रसाद सिंह ने कभी कलम के साथ समझौता नहीं किया। प्रशासनिक दायित्वों की व्यस्तता के कारण उनके लेखन का परिमाण अवश्य सीमित रहा तथा रचनाकर्म की निरंतरता भी बाधित हुई लेकिन एक बड़े तथा कालजयी रचनाकार के रूप में सत्य की प्रतिष्ठा के लिए वे सदैव संघर्षरत रहे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वाराणसी मंडल के पूर्व अपर आयुक्त एवं वरिष्ठ साहित्यकार ओम धीरज ने कहा कि एक बहुमुखी सृजन प्रतिभा के रूप में ठाकुर प्रसाद सिंह अपनी पीढ़ी के रचनाकारों में प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित रहे हैं। उपन्यास, कहानी, कविता, ललित निबन्ध, संस्मरण तथा अन्यान्य सभी विधाओं में उनका कृतित्व अपनी मौलिकता के कारण उल्लेखनीय है, किन्तु संथाली लोकगीतों की भावभूमि पर आधारित गीतों के संग्रह ‘बंसी और मादल’ के द्वारा वे हिन्दी नवगीत के प्रतिष्पादक रचनाकारों में अग्रगण्य हैं।
समारोह के विशिष्ट अतिथि के रूप में ‘नाद रंग’ पत्रिका के संपादक आलोक पराड़कर ने कहा कि ठाकुर प्रसाद सिंह ने एक समर्थ पत्रकार – साहित्यकार होने के साथ-साथ नयी प्रतिभाओं के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। वे एक बड़े रचनाकार के साथ ही बड़े इंसान भी थे। उनकी रचनाओं में पीड़ा की सामाजिकता दिखती है लेकिन जीवन में उनकी बातचीत हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण रहती थी। वे चुटीली टिप्पणी करते थे। विशेषांक के अतिथि संपादक डॉ.उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि ठाकुर प्रसाद सिंह का बड़ा स्पष्ट और स्थिर विश्वास था कि साहित्य के समुचित विकास और उसकी प्रतिष्ठा के लिए साहित्यकार होने के साथ-साथ साहित्यिक का होना आवश्यक है। प्रो.अर्जुन तिवारी ने भी विचार व्यक्त किए।