लखनऊ

विवाह के बाद पति के साथ ऐसा व्यवहार क्रूरता, हाईकोर्ट ने बताए विवाह अधिनियम के अधिकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करने को वैवाहिक अधिकार से वंचित करना बताया है। पीठ ने कहा कि जब पत्नी अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है। पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है तो यह वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना है। कोर्ट ने इसे पति के साथ क्रूरता के समान कहा है।

लखनऊAug 30, 2024 / 07:07 pm

Prateek Pandey

लखनऊ बेंच के जज रंजन रॉय और जज सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने एक व्यक्ति को तलाक देते हुए टिप्पणी की कि जब पत्नी अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है। पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है तो ये वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना है।

तलाक के मामले के बाद की टिप्पणी

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने तलाक के मामले के बाद की टिप्पणी करते हुए कहा कि जब पत्नी अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है या पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करती है तो ये वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना है और ये पति के साथ क्रूरता के समान है। लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की।
दरअसल एक व्यक्ति ने याचिका दायर करते हुए अपनी पत्नी पर उसे अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था। व्यक्ति ने बताया था कि पत्नी ने उसके कमरे में आने की कोशिश करने पर आत्महत्या कर लेने और आपराधिक मामले में फंसाने की धमकी देती है।
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मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘स्पष्ट है कि जब पत्नी ने अलग कमरे में रहने पर जोर दिया तो उसने वैवाहिक संबंध छोड़ दिया है। इसका कोई महत्व नहीं है कि पत्नी अभी भी घर में रह रही थी या बाहर क्योंकि पति ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह उसे अपने कमरे में प्रवेश करने नहीं देती है। पति-पत्नी के बीच फिजिकल रिलेशन बनाना भी वैवाहिक रिश्ते का एक अनिवार्य हिस्सा है। अगर पत्नी पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करके साथ रहने से इनकार करती है तो वह पति को वैवाहिक अधिकारों से वंचित कर रही है।

शारीरिक और मानसिक दोनों क्रूरता के समान

कोर्ट ने कहा कि इन सबका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों के समान है। पत्नी ने पति के इन आरोपों का खंडन भी नहीं किया है। ऐसे में यही माना जाएगा कि इसे स्वीकार कर लिया गया है।
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आपको बता दें कि दोनों ने 2016 में शादी की थी। साल 2018 में पति ने तलाक लेने के लिए पारिवारिक अदालत में याचिका दाखिल की थी और कहा कि दोनों पक्षों के बीच संबंध केवल 4-5 महीने तक सामान्य रहे। उसके बाद पत्नी ने परेशान करना शुरू कर दिया था। याचिका के बाद कुछ समय तो पत्नी पारिवारिक अदालत में पेश हुई लेकिन बाद में उसने पेश होना भी बंद कर दिया।

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