हर बच्चे को बेहतर शिक्षा का अधिकार है। इसके अंतर्गत प्रदेश सरकार द्वारा हर साल राइट टू एजुकेशन के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिलता है। ऐसे बच्चे निजी स्कूलों में भी एडमिशन के लिए अप्लाई करते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग उन बच्चों की लिस्ट जारी कर प्राइवेट स्कूलों को भेजता है। लेकिन प्रदेश में इस प्रक्रिया के बाद 9 हजार से अधिक बच्चों के एडमिशन स्कूल प्रशासन द्वारा नहीं लिए जा रहे हैं। स्कूलों का आरोप है कि फीस के करोड़ों रुपए शिक्षा विभाग पर बकाया हैं, जिसकी वजह से स्कूल बच्चों को प्रवेश देने से इंकार कर रहे हैं।
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इस शैक्षिक वर्ष में लखनऊ में 13000 बच्चों ने आरटीई के तहत एडमिशन के लिए अप्लाई किया था। इसमें 9000 बच्चों को शॉर्टलिस्ट करके 750 स्कूलों में एडमिशन के लिए भेजा गया। लेकिन स्कूलों में पहुंचने वाले बच्चों को स्कूल एडमिशन नहीं दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार शिक्षा विभाग की तरह से प्रति बच्चा 500 रुपये प्रति महीना बेसिक शिक्षा विभाग जमा करता है। हर बच्चे पर विभाग स्कूल को सालभर में तकरीबन 6000 देता है, जिसका बजट उत्तर प्रदेश सरकार देती है। लेकिन फिर भी स्कूलों तक नहीं पहुंचा।
इस शैक्षिक वर्ष में लखनऊ में 13000 बच्चों ने आरटीई के तहत एडमिशन के लिए अप्लाई किया था। इसमें 9000 बच्चों को शॉर्टलिस्ट करके 750 स्कूलों में एडमिशन के लिए भेजा गया। लेकिन स्कूलों में पहुंचने वाले बच्चों को स्कूल एडमिशन नहीं दे रहे हैं। सूत्रों के अनुसार शिक्षा विभाग की तरह से प्रति बच्चा 500 रुपये प्रति महीना बेसिक शिक्षा विभाग जमा करता है। हर बच्चे पर विभाग स्कूल को सालभर में तकरीबन 6000 देता है, जिसका बजट उत्तर प्रदेश सरकार देती है। लेकिन फिर भी स्कूलों तक नहीं पहुंचा।
क्या कहती हैं रिपोर्ट्स अगर रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले 3 सालों से उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा विभाग को इसका बजट नहीं दिया है। इसकी वजह से तकरीबन 197 करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश सरकार पर बकाया है। आरटीई की इंचार्ज रेनू कश्यप बताती है कि अब तक इस मद में शिक्षा विभाग को सिर्फ चार करोड़ रुपये मिले हैं। ऐसी फसाद की जड़ में बीच में बच्चों का भविष्य लटक कर रह गया।