आत्मविश्वास की कहानी
राजेश्वरी बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ने से उन्हें कई चीजों के बारे में जानकारी मिली। अब उनके पास खुद का पैसा रहता है और वे जरूरतमंदों की मदद भी कर सकती हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास भी जगा है, लेकिन यह सब हमेशा से ऐसा नहीं था। राजेश्वरी बक्शी का तालाब ब्लॉक के डिगोई गाँव में रहती हैं। वे पिछले पंद्रह साल से फाइलेरिया से पीड़ित हैं, जिसमें उनका दायां हाथ प्रभावित है। इसकी वजह से वे कई वर्षों तक अपने में ही परेशान रहीं, लेकिन उन्होंने इसे कमजोरी नहीं समझा बल्कि चुनौती के रूप में स्वीकार किया।
चुनौती से सामना
राजेश्वरी बताती हैं कि 15 साल पहले जब पता चला कि उन्हें फाइलेरिया है तो एक बार तो लगा कि अब जीवन कैसे बीतेगा, लेकिन फिर सोचा कि रोने से क्या फायदा। जब जीना है तो स्वीकार करो। काम करने में दिक्कत तो आती थी, हाथ में दर्द और सूजन रहती थी। दवा खा-खाकर दर्द और सूजन कम करते थे। दो साल पहले लखनऊ से सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) संस्था के प्रतिनिधि ने आकर फाइलेरिया रोगियों का समूह बनाया जिसमें वे जुड़ीं। इसमें संस्था के लोगों ने फाइलेरिया प्रभावित अंगों की देखभाल और व्यायाम के बारे में बताया था। उन्होंने इसका प्रशिक्षण लिया और दैनिक जीवन में नियमित रूप से अभ्यास किया। आज उन्हें बहुत आराम है और शायद यही कारण है जिससे वे सारे काम आसानी से कर पा रही हैं।
प्रेरणा का स्रोत
राजेश्वरी फाइलेरिया पीड़ित रोगियों को भी व्यायाम और देखभाल के तरीके बताती हैं और उन्हें सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से सही सलाह और उपचार लेने की राह दिखाती हैं। वे लोगों को संदेश देती हैं कि कमी को अपने ऊपर हावी न होने दें। अपने ऊपर भरोसा करें और प्रयास करें। मेहनत से कभी भी जी न चुराएं। राजेश्वरी दूसरों के लिए प्रेरणा हैं, जो अपनी कमी को बोझ समझते हैं और अपनी यथास्थिति से ही खुश रहते हैं। राजेश्वरी कहती हैं, “जब तक शरीर में जान है तब तक कुछ करते रहना है, बैठना नहीं है।” राजेश्वरी की कहानी आत्मबल और सामूहिकता की शक्ति का प्रेरक उदाहरण है। उन्होंने अपनी चुनौतियों को अवसर में बदलते हुए न केवल खुद को सशक्त बनाया बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनीं।