लखनऊ

अब अधेड़ और बूढ़े हो चुके लोगों को भी चाहिए जीवन साथी…

Corona Pandemic- लॉकडाउन में अकेलेपन से ऊब चुके एकल लोग दे रहे शादी का विज्ञापन, महामारी ने समझाया घर में बुर्जुगों का महत्व, संकट से उबरने में कर रहे मदद

लखनऊMay 11, 2021 / 05:37 pm

Hariom Dwivedi

इन दिनों अखबारों में वैवाहिक विज्ञापन में शादी के ऐसे विज्ञापनों की भरमार है जिनकी उम्र 55 से 60 साल के बीच है, या फिर वे नौकरी या बिजनेस से रिटायर हो चुके हैं

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
लखनऊ. कोरोना काल (Corona Pandemic) ने उन लोगों को ज्यादा अवसादग्रस्त कर दिया है जो उन्मुक्त ख्यालों के थे और कभी शादी न करने का फैसला लिया था। लेकिन लॉकडाउन और कर्फ्यू में उन्हें असुरक्षा और अकेलेपन का अहसास हुआ। इसलिए अब उन्हें जीवन साथी की तलाश है। इन दिनों अखबारों में वैवाहिक विज्ञापन में शादी के ऐसे विज्ञापनों की भरमार है जिनकी उम्र 55 से 60 साल के बीच है, या फिर वे नौकरी या बिजनेस से रिटायर हो चुके हैं।
कोरोना (Covid-19) महामारी ने छिन्न-भिन्न होती सामाजिक व्यवस्था को एक बार फिर से जीवित करने की उम्मीद जगायी है। विवाह नाम की संस्था की महत्ता एक बार फिर बढ़ी है। बड़ी संख्या में अब वे लोग भी विवाह को लालायित हैं जो लंबे समय से अकेले जिदंगी गुजार रहे थे। इनमें उन लोगों की संख्या ज्यादा है जो कहीं न कहीं सरकारी नौकरियों में थे और अच्छे ओहदे पर थे। इनके पास पैसे की कमी नहीं है। लेकिन यह अपने पैसे से मन का सुकून और संतुष्टि नहीं खरीद पा रहे। कोरोना के खौफ की वजह से उन्हें अब सुख-दुख बांटने के लिए जीवन साथी चाहिए। इसलिए वे अखबारों में शादी के लिए विज्ञापन दे रहे हैं। इसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल हैं।
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जाति-धर्म का बंधन नहीं
बात सिर्फ राजधानी लखनऊ (Lucknow) की करें तो पिछले एक माह में विभिन्न अखबारों में आए वैवाहिक विज्ञापनों में 50 प्रतिशत उम्रदराज लोगों की शादी से जुड़े थे। इन्हें जीवन की सांन्ध्य बेला में जीवन साथी चाहिए। खास बदलाव यह देखने में आया कि उम्रदराज लोगों को जाति और धर्म में यकीन नहीं है। बस इन्हें इनकी रुचियों से मिलता जुलता जीवन साथी चाहिए। जो इनके सुख दुख का भागीदार बन सके।
बुर्जुगों की अहमियत भी समझ रहे लोग
कोविड काल में घर बैठे-बैठे लोगों को अब बुर्जुगों की अहमियत भी समझ में रही है। दादी-अम्मा की नसीहतों सेे दुख से उबरने में मदद मिल रही है। बड़े-बूढ़े दुनियादारी की सीख दे रहे हैं। ऐसे में लोग अब बुर्जुगों के साथ रहना पसंद कर रहे हैं। तमाम शहरी परिवारों ने गांव में रहने वाले अपने बूढ़े मां-बाप को अपने पास बुला लिया है।
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क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ. ज्योत्सना पाल बताती हैं कि लॉकडाउन और कर्फ्यू में सब अपने-अपने परिवार में व्यस्त हैं। अकेले रहने वाले घर में बंद रहने से ऊब गए हैं। वे खुद को असुरक्षित और अकेला महसूस कर रहे हैं इसलिए सामाजिक सुरक्षा के लिए उन्हें जीवनसाथी की तलाश है।
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