टिप्पणी हरिओम द्विवेदी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव न तो धृतराष्ट्र और न मुख्यमंत्री अखिलेश राम हैं। दोनों ने रिश्तों से हटकर कड़े राजनीतिक फैसले लिए। सपा सुप्रीमो ने बेटे के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर संदेश दिया कि वह धृतराष्ट्र नहीं हैं, वहीं अखिलेश ने पिता के फैसले के खिलाफ बगावती तेवर अपनाकर जता दिया कि वह पिता की आज्ञा मानकर ‘वनवास’ जाने वाले राम नहीं हैं। नतीजन चाचा-भतीजे के बीच छिड़ी वर्चस्व की जंग में पिता-पुत्र का रिश्ता राजनीति की बलि चढ़ गया। दोनों ने राजनीतिक हितों के चलते भारी मन से एक-दूसरे के खिलाफ कड़े फैसले लिए। बेटे को पार्टी से निकालने का फरमान सुनाते समय पिता मुलायम की स्थिति ठीक वैसी थी, जैसे एक बाप मजबूरन बेटे को घर से बाहर निकालने का फैसला लेता है। प्रेसवार्ता के दौरान मुलायम सबके सामने भावुक हो गए। जैसे-तैसे खुद को संभाला और बमुश्किल ही बेटे को पार्टी से निकालने का फैसला सुना सके। उन्होंने कहा कि भला कोई बाप अपने बेटे के खिलाफ इतना कड़ा फैसला लेता है। लेकिन मुझे लेना पड़ रहा है। छलछला आए आंसुओं को रोकने का प्रयास करते हुए रुंधे हुए गले से मुलायम ने कहा कि अकेले मेरे बेटा मानने से क्या होगा, वह भी मुझे पिता मानें तब न। वह तो मेरे झगड़ता है। ऐतिहासिक फैसले के बाद मुलायम ने कहा कि मेरे लिए परिवार से बढ़कर पार्टी है। आखिरकार पिता मुलायम ने भारी मन से अपने बेटे को पार्टी से निकालने का मुश्किल फैसला सुनाया तो बेटे अखिलेश ने भी समर्थकों से अपील करते हुए कहा कि प्लीज पापा के खिलाफ नारेबाजी न करें। दोनों का कहना है कि दोनों के आसपास ऐसे लोग हैं जो उन्हें ‘भड़का’ रहे हैं। करीब साढ़े चार साल तक सार्वजनिक मंच से पिता की डांट को अपनी मुस्कराहट से झेलने वाले अखिलेश आखिरकार बगावत कर बैठे। अखिलेश ने अपने खेमे के 31 प्रत्याशियों के टिकट कटने के विरोध में बगावती तेवर अपनाए तो मुलायम ने अनुशासनहीनता की बात कहकर दंडात्मक कार्रवाई की। दोनों ने अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए कड़े फैसले लिए। लेकिन अखिलेश के सामने असली मुश्किल तो अब है। उनके सिर पर सपा सुप्रीमो का ‘आशीर्वाद’ नहीं होगा, लेकिन समर्थकों की साथ जरूर है। हालात ऐसे हैं कि दोनों का झुकना नामुमकिन दिख रहा है। मुलायम ने शनिवार को घोषित 393 कैंडिडेट्स की मीटिंग बुलाई। इनमें कई ऐसे उम्मीदवार हैं जिनका नाम अखिलेश की लिस्ट में है। वहीं, अखिलेश ने भी विधायकों की मीटिंग बुलाई, जिन्हें मुलायम-शिवपाल की मीटिंग में भी शामिल होना है। ऐसे में बाप-बेटे की लड़ाई में अखिलेश समर्थकों की अग्नि परीक्षा तय है, मतलब उनके लिए भी निर्णायक दिन है। अखिलेश ने तो अपना तुरुप का पत्ता खोल दिया है, अब बारी समर्थकों की है। शिवपाल की लिस्ट में जिनके नाम नहीं हैं वो तो अखिलेश के समर्थन में संभवता आएंगे, लेकिन जिन्हें शिवपाल और मुलायम की लिस्ट में जगह मिली है, उनका फैसला अखिलेश की राजनीति की दिशा और दशा तय करेगा। संभावना : मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री को माफ कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें फिर से प्रत्याशियों की नई लिस्ट जारी करनी होगी। इस स्थिति में शिवपाल समर्थकों का पत्ता कट सकता है।