हरिओम द्विवेदी लखनऊ. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कभी भी हो सकता है। लेकिन गठबंधन पर अभी भी स्थिति साफ नहीं है। सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन की अटकलें तेज है। मायावती और ओवैसी के साथ मिलकर लड़ने की खबरें आ रही हैं। इस बीच ‘छोटे चौधरी’ यानी अजित सिंह बड़े गठबंधन की जद्दोजहद में लगे हैं। इस काम के लिए उन्होंने अपने पिता और किसान नेता चौधरी चरण सिंह की जयंती के दिन को चुना है। लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटी राष्ट्रीय लोकदल यूपी विधानसभा चुनाव में अस्तित्व बचाए रखने की जुगत में जुटा है। लेकिन रालोद मुखिया यह अच्छी तरह से जानते हैं कि यूपी में अकेले दम पर खोई ताकत हासिल पाना मुश्किल होगा। इसलिए छोटे चौधरी ने बड़े दलों से गठबंधन की कोशिश तो की थी लेकिन बात न बन पाने के बाद अजित सिंह अब छोटे दलों को एक मंच पर लाना चाहते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेष दखल रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने यूपी चुनाव में गठबंधन के साफ संकेत दिए हैं। रालोद मुखिया अजित सिंह ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को खत लिखकर साफ कहा था कि उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए लोहिया और चरण सिंह समर्थकों को एक साथ आने की बात कह चुके हैं। सपा के रजत जयंती समारोह के अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, शरद यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे दिग्गज नेता इक्ट्ठा हुए। इस दौरान सबने गठबंधन की बात भी कही, लेकिन मुलायम ने गठबंधन से मना कर दिया। तबसे अजित सिंह जदयू, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और देवगौड़ा की जेडीएस समेत कई पार्टियों सें संपर्क में है। माना जा रहा है कि 23 दिसंबर को बड़े चौधरी यानी चौधरी चरण सिंह की जयंती के बहाने छोटे चौधरी छोटे दलों के बड़े गठबंधन का एलान कर सकते हैं। यूपी में ढीली पड़ती रालोद की पकड़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल इलाकों (मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, जेपी नगर, मथुरा, आगरा, बिजनौर) में कभी राष्ट्रीय लोकदल की अच्छी पकड़ मानी जाती थी। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। इन इलाकों से सपा-बसपा ने भी जाट नेताओं को मैदान में उतार दिया। 2012 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल ने 9 सीटों पर, 2007 के विधानसभा चुनाव में 10 सीटों पर और 2002 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी। चुनाव में विधायकों की कम होती संख्या इस बात का उदाहरण है कि लगातार उत्तर प्रदेश में रालोद लगातार का प्रदर्शन गिरता जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीते चार दशकों में जाट लैंड की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है। अब यहां से चुनाव जीतने के लिए जाटों के साथ ही मुस्लिमों और दलितों का भी वोट चाहिए होगा।