उत्तराखंड में 12 नवंबर को ईगास-बग्वाल त्योहार मनाया जाएगा। यह उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार है। इसे बग्वाल भी कहा जाता है। ईगास बग्वाल दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से गढ़वाल क्षेत्र में मनाया जाता है। इसके साथ कई लोक परंपराएं जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की जानकारी पहाड़ों में देरी से मिली थी, इसलिए स्थानीय लोग दिवाली के कुछ दिन बाद इसे दीप पर्व के रूप में मनाते हैं। इस दिन भैलो खेला जाता है, जो लकड़ी की मशाल जलाकर मनाए जाने वाला एक पारंपरिक खेल है।
क्या होता है ईगास-बग्वाल के दिन
ईगास-बग्वाल के दिन सामूहिक नृत्य, गीत-संगीत और लोक नाट्य का आयोजन भी होता है। इसमें स्थानीय लोग पारंपरिक परिधानों में सजधज कर भाग लेते हैं। ग्रामीण इलाकों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं, जैसे कि उरद की पकोड़ी, भट के पकौड़े और कई तरह की मिठाइयां। इस दिन उत्तराखंड सरकार ने इस पर्व की महत्ता को समझते हुए राज्य में इसे सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है, ताकि लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर को मनाने के लिए अपने गांव और परिवारों में जा सकें। ईगास-बग्वाल केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के लोगों की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है, जो उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है।