यूपी में कांग्रेस का हुआ बुरा हाल राहुल गांधी की अध्यक्षता में जब कांग्रेस लोकसभा चुनाव में उतरी तो प्रियंका और सिंधिया से बेहतर नतीजों की उम्मीद की गई। जिसको देखते हुए प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में कानपुर से लेकर गोरखपुर मंडल तक की 42 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम यूपी की 38 लोकसभा सीटों पर कमाल दिखाना था। लेकिन सारी मेहनत पर पानी फिर गया और पार्टी को जबरदस्त हार का मुंह देखना पड़ा। आलम यह रहा कि केवल सोनिया गांधी ही अपनी रायबरेली सीट जीतकर कांग्रेस का खाता खोल सकीं। प्रियंका गांधी ने यूपी में सिर्फ चुनाव प्रचार ही नहीं संभाला बल्कि संगठन में नियुक्ति से लेकर उम्मीदवारों के चयन का काम भी किया।
अमेठी में लगा सबसे बड़ा झटका ज्योतिरादित्य सिंधिया की जिम्मेदारी वाली 38 लोकसभा सीटों में से केवल इमरान मसूद ही अपनी जमानत बचा सके। जबकि बाकी सीटों पर कांग्रेस औंधे मुंह गिरी। वहीं प्रियंका गांधी के प्रदर्शन पर नजर डालें तो उनके प्रभार वाली सीटों में केवल राहुल गांधी अमेठी और श्रीप्रकाश जायसवाल कानपुर ही ऐसे कैंडीडेट रहे, जिनकी जमानत बची। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली अमेठी सीट पर लगा, जहां राहुल गांधी को करारी हार झेलनी पड़ी। जबकि गांधी परिवार का कोई सदस्य आपातकाल के बाद पहली बार अमेठी की सीट हारा है। 1977 में संजय गांधी को भारतीय लोकदल के रवींद्र प्रताप सिंह ने हराया था और अब राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने शिकस्त दी थी।
आपातकाल के दौर में पहुंची कांग्रेस यूपी में कांग्रेस की इतनी बुरी हालत 1977 में आपातकाल के समय हुई थी। उस दौरान कांग्रेस का सूबे में खाता तक नहीं खुल पाया था। 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे आपातकाल की तरह ही हैं। जानकारों के मुताबिक यही वजह रही कि राहुल गांधी की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी हार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेते हुए महासचिव पद से इस्तीफा दिया। जिसके बाद अब प्रियंका गांधी पर भी दबाव बढ़ गया है। क्योंकि दोनों को एक साथ ही पार्टी का महासचिव बनाया गया था। आब देखना होगी कि क्या प्रियंका गांधी भी पूर्वी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देंगी।