यहीं से साधेंगी विरोधियों पर निशाना अभी तक एक स्थायी पता न होने के कारण प्रियंका को अक्सर कांग्रेस कार्यालय या लखनऊ के होटलों में रुकना पड़ता था। लेकिन आने वाले दिनों में यूपी में प्रियंका की सियासी गतिविधियां बढ़ने जा रही हैं। वे इन्हें लखनऊ से ही संचालित करने वाली हैं। उधर, अभी तक छोटे प्रवासों के कारण उनके विरोधी भी उन पर निशाना साधते थे। इसके अलावा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भी बरसों से मांग थी कि प्रियंका का यूपी में एक स्थायी पता हो, जहां से वे अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाहन के साथ-साथ अपने विरोधियों पर निशाना भी साध सकें। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि लखनऊ में एक पता होने से प्रियंका ग्राउंड जीरो से प्रदेश की सियासत की जब्ज टटोल सकेंगी। इससे देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले सूबे में पार्टी के पुनरुद्धार की उनकी मंशा के संकेत स्पष्ट किए जा सकेंगे।
पिछले दो दशक से राज्य में लगभग हाशिये पर चल रही कांग्रेस का वोट प्रतिशत काफी गिर गया है। राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल पड़ चुकी स्थिति को सुधारने के लिए कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी अपील को बढ़ाने में लगी है। पिलछे साल हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अपनी परंपरागत सीट अमेठी हार गए। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ एक सीट (रायबरेली) पर सिमट कर रह गई। वहीं, पिछले वर्ष अक्टूबर में राज्य विधानसभा की 11 सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने 11.49 फीसदी वोट हासिल किए। किसी भी सीट पर कांग्रेस को जीत नहीं मिली, हालांकि कुछ सीटों पर उनका प्रदर्शन काफी बेहतर रहा।
जानें कौन थीं शीला कौल लखनऊ का जो आशियाना प्रियंका गांधी का नया ठिकाना होगा, उसका कांग्रेस और गांधी परिवार से गहरा नाता है। शीला कौल इंदिरा गांधी की मामी थीं। उनका विवाह कमला नेहरू के भाई और प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी कौशल नाथ कौल के साथ हुआ था। कौशल नाथ कौल ने लखनऊ में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान की स्थापना की थी।
पार्षद से राज्यपाल तक का पद शीला कौल ने आजादी की लड़ाई में एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर हिस्सा लिया था। 1959 से लेकर 1965 तक कौल लखनऊ नगर निगम की पार्षद रहीं। 1968 से 1971 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य रहीं। 5 बार भारतीय संसद की सदस्य रहीं कौल ने 1980-84 और 1991-95 तक केंद्रीय मंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। 1995-96 तक एक साल उन्होंने हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल का पद भी संभाला।