यूपी में राज करने के लिए भाजपा के पास दो विकल्प दिल्ली की सत्ता यानी प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के लिए अगर सबसे आसान तरीका है तो उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करना। लेकिन यही सबसे कठिन डगर भी है। क्योंकि सबसे बड़े प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं होगा। बस भाजपा की नज़रें आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में अपने धूर प्रतिद्वंदी को समाप्त करने की है। जिससे प्रदेश में लोकसभा में उसे किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। हालांकि साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन यूपी में कहीं बेहतर था।
लेकिन 2022 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को लेकर लोगों में दिखा उत्साह भाजपा के लिए चिंता का विषय है, क्यूंकी सपा को सीट भले ही कम मिली हों लेकिन अखिलेश यादव का क्रेज युवाओं और ग्रामीणों में बना हुआ है। अगर इसमें थोड़ा सा भी जातिगत तड़का लगा तो भाजपा के मिशन लोकसभा में सेंध लग सकती है। इसी वजह से भाजपा अब ऐसे दांव खेलना चाहती है जिससे खुद उसके विरोधियों को सोचने का मौका न मिले। इसके लिए भाजपा दलित और यादवों पर दांव खेलने का मन बना रही है। जिससे दलित या ओबीसी वोटर फिक्स हो जाएगा।
दलितों में सर्वमान्य नेता मायावती दलितों में सर्वमान्य नेता के तौर पर बसपा सुप्रीमो मायावती को देखा जा रहा है। वो चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। जबकि यूपी के बीते हुए हाल के विधानसभा चुनाव से ही मायावती पर भाजपा के इशारे पर चलने का आरोप लगता रहा है, जिसमें सपा को हराने के लिए भाजपा की रणनीति पर टिकटों का बंटवारा किया गया। जिसका नतीजा साफ दिखा कि यूपी में योगी सरकार अपना दूसरा कार्यकाल शुरू कर चुकी है यानी भाजपा पूर्णबहुमत से जीतकर आई।
ऐसे में रिटर्न गिफ्ट के तौर पर मायावती को राष्ट्रपति बनाकर वो दलित वोटरों को अपने साथ मिलाने का पूरा प्रयास करेगी। इससे आगामी होने वाली गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी फायदा भाजपा को मिल सकता है। साथ ही उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों के पास बसपा या मायावती जैसा विकल्प खत्म हो जाएगा, जिसका सीधा फायदा मायावती की अपील पर सीधे भाजपा को ही होगा। इससे एक बड़े प्रतिद्वंदी के तौर पर मायावती बहुत आसानी से रास्ते से हट जाएंगी।
नेता जी का कोई विकल्प ही नहीं पूरे देश भर में नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव का कोई विकल्प फिलहाल समाजवादी पार्टी या उसके वोटरों को अभी तक नहीं मिल पाया है। मुलायम सिंह यादव खुद कई बार मुख्यमंत्री और एक बार रक्षामंत्री रह चुके हैं। जबकि अखिलेश यादव मेहनत कर रहे हैं लेकिन यादव और मुस्लिम वोटर अभी भी अखिलेश यादव को नेताजी के बेटे के तौर पर देखता है उनके विकल्प के तौर पर नहीं। क्यूंकी मुलायम सिंह यादव से मिलना उनके वोटर्स का जितना सहज होता था, अखिलेश यादव से मिलना उतना ही कठिन है। मुलायम सिंह यादव जमीनी नेता लोगों के साथ गाँव गाँव मिलकर बनें। लेकिन हाशिए पर आ चुके अखिलेश यादव, ज़मीन पर उतरकर भाजपा से लड़ना तो दूर लोगों से मिल भी नहीं रहे हैं। बस इसी का फायदा भाजपा उठाना चाहती है।
वो मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रपति उम्मीदवार बना सकती है। जिससे एक साथ यादव और अन्य ओबीसी वोटर उसके पक्ष में आ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो अखिलेश यादव के राजनीतिक करियर का 50 प्रतिशत समाजवादी वोटर उनसे हमेशा के लिए कट जाएगा। जिसका सीधा फायदा यूपी में भाजपा को ही मिलेगा।
कितने सदस्य जो करेंगे वोट, कौन कब होंगे चुनाव राज्यसभा और फिर राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव। राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। इसको लेकर सियासी गलियारे में हलचल काफी तेज है। राज्यसभा के तुरंत बाद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना है। लोकसभा, राज्यसभा और अलग-अलग विधानसभा में सदस्यों के आंकड़ों को देखें तो भाजपा काफी मजबूत स्थिति में है। ऐसे में हर किसी की नजर भाजपा के संभावित उम्मीदवार पर टिकी है। राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा के सभी सांसद और सभी राज्यों के विधायक वोट डालते हैं।