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लखनऊ

Person of the Week : आरिफ की सियासी दुविधा और भाजपा की मुश्किल

Person of the Week : बुलंदशहर में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान इन दिनों यूपी से लेकर केरल तक सुर्खियों में बने हुए हैं

लखनऊJan 25, 2020 / 06:57 pm

Hariom Dwivedi

Arif Mohammad Khan

बुलंदशहर में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान का सियासी सफर बहुत लंबा है

महेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ. आरिफ मोहम्मद खान इन दिनों यूपी से लेकर केरल तक सुर्खियों में बने हुए हैं। कभी नागरिकता संशोधन कानून की जोरदार पैरवी तो कभी हिन्दू-मुस्लिम जैसे शब्दों से परहेज करने की हिदायद के बयान से वह सियासी दुनिया में चर्चा बटोरते रहे हैं। भाजपा ने यूपी से हजार किमी दूर आरिफ मोहम्मद खान को केरल में राज्यपाल बनाकर भेजा। तब भाजपा ने यह सोचा था कि केरल की 26 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को साधने में आरिफ मददगार साबित होंगे। लेकिन, इन दिनों इनका केरल सरकार से जर्बदस्त टकराव चल रहा है। यह स्थिति तब हुई जब केरल सरकार ने बिना राज्यपाल की अनुमति के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी। इस पर खान ने नाराजगी जतायी। और सरकार पर संवैधिनिक प्रोटोकॉल और शिष्टाचार तोड़ने का आरोप लगाया। खान के आरोपों के बाद कांग्रेस ने राज्यपाल को वापस बुलाए जाने का प्रस्ताव विधान सभा में लाने की घोषणा कर दी है। इससे खुद आरिफ और भाजपा के समक्ष सियासी दुविधा खड़ी हो गयी है।
बुलंदशहर में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान का सियासी सफर बहुत लंबा है। सांसद, कैबिनेट मंत्री और अब राज्यपाल। इस लंबे करियर में वे हमेशा सुर्खियों में ही रहे। कांग्रेस, जनमोर्चा और बसपा के बाद भाजपा से जुड़े। प्राय: हर दल की विचारधारा से सामंजस्य बिठा लेने वाले आरिफ मोहम्मद खान राजीव गांधी मंत्रिमंडल में ऊर्जा मंत्री थे। 1986 में शाहबानो मामला उछला। तब उन्होंने महिलाओं के पक्ष में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले को मान लेने के लिए कांग्रेस पर दबाव बनाया। लेकिन, रुढ़ियों के आगे कांग्रेस जब झुकती नजर नहीं आयी तब खान ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। मंत्रिपद से शहादत के बाद आरिफ मुस्लिम महिलाओं के हक के योद्धा बन गए। 1987 में जब वीपी सिंह ने जनमोर्चा बनाया तब यह भी उसमें शामिल हो गए। वीपी मंत्रिमंडल में एक बार फिर ऊर्जामंत्री बने। यहां भी चर्चा में तब आए जब सेंट किट्स धोखाधड़ी मामले में तांत्रिक चंद्रास्वामी को लपेटने की कोशिश की। वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद खान साहब बसपा में चले गए। लेकिन, यूपी में जब बसपा ने भाजपा से हाथ मिला लिया तब उन्होंने मायावती का साथ छोड़ दिया। हालांकि, 2004 में इन्होंने यह कहते हुए कि कांग्रेस भी किसी और पार्टी जितनी सांप्रदायिक है भाजपा का दामन थाम लिया। 2004 में भाजपा से इन्होंने बहराइच के कैसरगंज से लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गए। 2007 में इनका भाजपा से मोहभंग हो गया। इसके बाद लंबे समय तक राजनीतिक वनवास में चले गए। इस बीच ऐसे समीकरण बने कि भाजपा ने सितंबर 2019 में इन्हें केरल का राज्यपाल बनाकर सबको चौंका दिया।
राज्यपाल बनने के बाद तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दे पर बेबाक बयान देते रहे हैं। इसी हफ्ते यह अयोध्या में थे। तब उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था-भगवान श्रीराम और अयोध्या सदियों से मर्यादा और सद्भाव का संदेश दे रहे हैं। सुशासन भगवान राम व रामराज्य की देन है। नागरिक संशोधन कानून की जोरदार वकालत करते हुए कहा, इस कानून को लागू करने से कोई नहीं रोक सकता। तीन तलाक पर आरिफ मोहम्मद खान का बयान बीजेपी के लिए हमेशा ढाल बना रहा। कुरान एंड कंटेम्पोरेरी चैलेंजेज नामक बेस्ट सेलर किताब लिख चुके आरिफ के बयानों के ज़रिए बीजेपी ने कई मौकों पर यह जताने की कोशिश की कि तीन तलाक का कानून मुस्लिमों के खिलाफ नहीं बल्कि मुस्लिमों के हित में लाया गया है।
एक प्रगतिशील मुस्लिम चेहरे को केरल का गवर्नर बनाने के पीछे बीजेपी की रणनीति मिशन केरल और मुस्लिम विरोधी छवि की काट खोजने की कोशिश भी थी। मुस्लिमों में उन्हें चाहने वाले भी हैं और नापसंद करने वाले भी। एक वर्ग प्रगतिशील और सुधारक मानकर उन्हें पसंद करता है तो दूसरा धड़ा बीजेपी की लाइन पर चलने वाला शख्स मानकर नापसंद भी करता है। ऐसे में एक बार फिर गहरे विवादों में घिरे आरिफ भाजपा की सोच को कहां तक पूरा कर पाते हैं और अपना वजूद बचा पाते हैं यह आने वाला वक्त बताएगा।

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