जब बीएचयू निर्माण के दौरान हैदराबाद के निजाम की जूती नीलाम करने निकल पड़े थे पंडित मदन मोहन मालवीय, मशहूर है उनसे जुड़ा ये किस्सा
अपने सरल स्वभाव के लिए जाने जाने वाले मदन मोहन मालवीय जी (Madan Mohan Malviya) ने उस दौर में भी समाज की रूढ़ीवादी मानसिकता को दूर करने का निरंतर प्रयास किया। उनके सरल स्वभाव का प्रभाव ही था कि वे उस दौर के सबसे लोकप्रिय शख्सियत बन गए। 1915 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की। वे हिंदू महासभा के संस्थापक रहे।
वाराणसी/लखनऊ. महान स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, वकील और समाज सुधारक पंडित मदन मोहम मालवीय जी (Pandit Madan Mohan Malviya) की आज जयंती है। उनका जन्म 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज (इलाहाबाद) में पंडिट बृजनाथ और मूना देवी के घर हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय के पूर्वज मध्यप्रदेश के मालवा से थे। इसी कारण उनका नाम ‘मालवीय’ पड़ गया और उन्हें इसी नाम से पुकारा जाने लगा। संस्कृत के ज्ञाता मदन मोहन मालवीय ने पांच वर्ष की उम्र से ही संस्कृत की शिक्षा गृहण करना शुरू कर दी थी। इसके बाद म्योर सेंट्रल कालेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय सहित विभिन्न शिक्षण संस्थानों से शिक्षा हासिल करते हुए एक कुशल अधिवक्ता, पत्रकार, समाज सुधारत व भारत की युवा पीढ़ी को भारतीयता का पाठ पढ़ाने वाले एक सफल शिक्षक बने। अपने सरल स्वभाव के लिए जाने जाने वाले मदन मोहन मालवीय ने उस दौर में भी समाज की रूढ़ीवादी मानसिकता को दूर करने का निरंतर प्रयास किया। उनके सरल स्वभाव का प्रभाव ही था कि वे उस दौर के सबसे लोकप्रिय शख्सियत बन गए। 1915 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की। वे हिंदू महासभा के संस्थापक रहे।
बड़े भाई की तरह मानते थे बापू महात्मा गांधी ने मदन मोहन मालवीय को महामना की उपाधि दी थी। बापू उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानते थे। बापू ने मदन मोहन मालवीय के सरल स्वभाव का जिक्र करते हुए कहा था, ”जब मैं मालवीय जी से मिला ….वो मुझे गंगा की धारा की तरह निर्मल और पवित्र लगे। मैंने तय किया मैं उसी निर्मल धारा में गोता लगाऊंगा।” मदन मोहन मोहन मालवीय ने ही सत्यमेव जयते को लोकप्रिय बनाया था। यह बाद में चलकर राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बना और इसे राष्ट्रीय प्रतीक के नीच अंकित किया गया। हालांकि इस वाक्य को हजारों साल पहले उपनिषद में लिखा गया था। लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने के पीछे मदन मोहन मालवीय का हाथ था।
कांग्रेस काल में दी सेवाएं पंडित मदन मोहन मालवीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष चुने गए, वर्ष 1909 में लाहौर, 1918 और 1930 में दिल्ली व 1932 में कोलकाता में कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष रहे। मालवीय जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर कई वर्षों तक कांग्रेस की सेवा की और राष्ट्र सेवा में अपना योगदान दिया। जब ब्रिटिश सरकार ने चौरी-चौरा कांड में लगभग 170 लोगों को फांसी की सजा सुनाई तब पंडित मदन मोहन मालवीय ने मुकदमें की पैरवी कर लगभग 151 लोगों को बचाया। उनकी योग्यता का लोहा अंग्रेजी हुकूमत भी मानती थी। मदन मोहन मालवीय ने सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई. इन आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। 1920 में असहयोग आंदोलन, लाला लाजपतराय के साथ साइमन कमीशन का विरोध, नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई। मालवीय जी ने वर्ष 1931 में पहले गोलमेज सम्मेलन में देश का प्रतिनिधित्व किया और वर्ष 1937 में राजनीति से सन्यास लेकर समाज सेवा से जुड़ गए।
भरे बाजार में नीलाम की थी निजाम की जूती बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण के दौरान मदन मोहन मालवीय का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। बीएचयू निर्माण के लिए मदन मोहन मालवीय देशभर से चंदा इकट्ठा करने निकले थे। इसी सिलसिले में वे हैदराबाद निजाम के पास आर्थिक मदद की आस में पहुंचे। मदन मोहन मालवीय ने निजाम से कहा कि वो बनारस में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आर्थिक सहयोग दें मगर निजाम ने आर्थिक मदद देने से साफ इनकार कर दिया। इसके उलट निजाम ने बेइज्जती करते हुए कहा कि दान में देने के लिए उनके पास सिर्फ जूती है। मदन मोहन मालवीय जी बिना कुछ कहे निजाम की जूती ही दान में लेकर चले गए। इसके बाद भरे बाजार में मालवीय जी ने निजाम की जूती नीलाम करने की कोशिश की। हैदाराबाद के निजाम को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्हें लगा कि उनकी इज्जत नीलाम हो रही है। इसके बाद निजाम ने मदन मोहन मालवीय को बुलाकर उन्हें भारी भरकम दान देकर विदा किया।
दान में मिली थी ये संपत्ति बीएचयू निर्माण के लिए मदन मोहन मालवीय को 1360 एकड़ जमीन दान में मिली थी। इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, एक मंदिर और एक धर्मशाला शामिल था।
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