केंद्र सरकार के आर्थिक सलाहकार का मानना है कि रेलवे के सभी चिकित्सालयों में आम लोगों के इलाज से देश-प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होंगी। सरकारी अस्पतालों का भी बोझ कम होगा। गैर रेलवे कर्मचारियों को भी इलाज की अच्छी सुविधा मिलेगी। रेलवे अस्पतालों में मरीजों की संख्या तो बढ़ेगी ही, अस्पतालों को भी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हो पाएंगी। रेलवे की ही तरह कर्मचारी राज्य बीमा के अस्पतालों में भी आमजन को चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रस्ताव आ चुका है। निश्चित रूप से इस तरह की व्यवस्था होने से विभागीय अस्पतालों की माली हालत में सुधार होगा। मरीजों के इलाज से मिलने वाली राशि से इन अस्पतालों का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारा जा सकेगा।
उत्तर प्रदेश में अभी करीब 200 बड़े सरकारी अस्पताल हैं। लगभग चार दर्जन मेडिकल कॉलेज हैं। इसके अलावा प्रदेश में 3600 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 800 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और अन्य छोटे स्वास्थ्य केंद्र 1000 हैं। इनमें हर दिन बड़ी संख्या में लोग इलाज के लिए आते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, प्रदेश की करीब 50 फीसदी आबादी यानी 12 करोड़ लोग हर साल सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं। अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती तादाद और सीमित चिकित्सकों की संख्या के चलते सभी को अच्छा इलाज मिलने में दिक्कत होती है। नतीजन लोग निजी अस्पतालों का रुख करते हैं, जहां इलाज का खर्च उनकी पहुंच से बाहर होता है।
प्रस्ताव पर सहमति के बाद उत्तर प्रदेश के करीब तीन दर्जन से अधिक रेलवे के अस्पतालों और हेल्थ यूनिट्स आमजन के लिए खुल जाएंगे। ऐसा होने से लोगों को बड़ी राहत के साथ गुणवत्तापूर्ण और सस्ता इलाज भी मिलेगा। इतना ही नहीं कोरोना महामारी के पोस्ट इफेक्ट से भी निपटना आसान हो जाएगा। होना तो यह चाहिए कि रेलवे अस्पतालों की ही तरह सैनिक अस्पतालों और नवरत्न कंपनियों आदि के अस्पतालों को भी पीपीपी मॉडल पर लागू करने पर विचार हो ताकि मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल स्टॉफ का समुचित इस्तेमाल हो सके। सभी को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने को इससे बढ़िया और कोई विकल्प हो ही नहीं सकता।