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लखनऊ

नॉनवेज (Non Veg) का इतना नुकसान नहीं जानते होंगे आप, पूरी दुनिया पर मंडरा रहा ये बड़ा ख़तरा

नॉनवेज हमारा कितना नुकसान कर रहा है इस बात को शायद आप नहीं जानते होंगे। जी हाँ नॉनवेज से मानव सभ्यता के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। ये बात सौ फीसदी सच है कि अगर हमें दुनिया को बचाना है तो मांस खाना छोड़ना होगा और शाकाहारी बनना होगा।

लखनऊFeb 07, 2022 / 07:46 pm

Vivek Srivastava

नॉनवेज (Nov Veg) का इतना नुकसान नहीं जानते होंगे आप

नॉनवेज (Nov Veg) का इतना नुकसान नहीं जानते होंगे आप

Non Veg Khane Ke Nukshan: देश और दुनिया में नॉनवेज खाने के शौकीन लोगों की कमी नहीं है। यूपी की बात करें तो देश के कुल मीट निर्यात में करीब 65 फीसदी हिस्सा इसी का है। वहीं अगर बफैलो मीट की बात करें तो यूपी में इसका सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। साल 2020-21 में ही यूपी से 13 हजार 830.82 करोड़ रुपये का बफैलो मीट निर्यात हुआ था। लेकिन नॉनवेज हमारा कितना नुकसान कर रहा है इस बात को शायद आप नहीं जानते होंगे। जी हाँ नॉनवेज से मानव सभ्यता के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है। अगर दुनिया को नष्ट होने से बचाना है तो हमें मांसाहार छोड़ कर शाकाहार को अपनाना होगा। सुनने में कुछ अटपटा लग रहा होगा ना… आप सोच रहे होंगे कि मांसाहारी खाने का दुनिया के नष्ट होने से क्या संबंध हो सकता है। मगर ये बात सौ फीसदी सच है कि अगर हमें दुनिया को बचाना है तो मांस खाना छोड़ना होगा और शाकाहारी बनना होगा।
रिसर्च में हुए हैं चौंकाने वाले खुलासे

कुछ वक्त पहले हुई एक रिसर्च में ये चौंकाने वाले खुलासे हुए थे। 16 देशों के 37 विशेषज्ञों, जिनमें एग्रीकल्चर साइंटिस्ट से लेकर क्लाइमेट चेंज और न्यूट्रिशन शामिल थे, ने तीन साल तक काम करने के बाद जो रिपोर्ट दी है वो बेहद चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर आने वाली पीढ़ियों को जीवित रखना है तो हमें अपने खाने की आदतों में बदलाव करना होगा। इस बदलाव का सीधा सम्बन्ध मांसाहार को छोड़ शाकाहार अपनाने को लेकर है।
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धरती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला भोजन बीफ

रिपोर्ट के मुताबिक धरती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला भोजन बीफ है। मवेशी ना सिर्फ धरती को गर्म करने वाली मीथेन गैस की मात्रा बढ़ाते हैं बल्कि उनकी वजह से कार्बन सोखने वाले जंगलों को भी सफाया हो रहा है। खासतौर से ब्राजील में हर साल बड़ी मात्रा में जंगलों की कटाई मवेशियों के लिए की जा रही है। अगर तुलना करें तो एक किलो मांस जितने संसाधनों के जरिए पैदा होता है उतने में पांच किलो अनाज पैदा हो सकता है। इतना ही नहीं प्लेट में आने वाले मांस का 30 फीसदी हिस्सा सीधे कूड़े में चला जाता है। जबकि अनाज के साथ ऐसा नहीं है।
“प्लेनटरी हेल्थ डाइट”

इसमें कहा गया है कि दुनिया में 82 करोड़ लोगों को पर्याप्त खाना नहीं मिलता है। 2050 तक जब दुनिया की आबादी करीब दस अरब पहुंच जाएगी, तब दुनिया के सामने लोगों का पेट भरने की समस्या विकराल रूप से मुंह बाये खड़ी हो जाएगी। इस समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों ने विशेषज्ञों ने एक डाइट चार्ट भी बनाया है जिसे “प्लेनटरी हेल्थ डाइट” का नाम दिया गया है। इस डाइट चार्ट में सिर्फ मांस में ही कटौती की बात नहीं की गई है। इसमें दूध या दूध से बनने वाली चीजों के लिए भी सीमा निर्धारित की गयी है।
रोज सिर्फ एक कप ही दूध

इसमें चीनी (शुगर) और रेड मीट की खपत आधी करने के साथ ही कई सब्जियों, फल और ड्राइफ्रूट की खपत को दोगुना करने की बात कही गई है। इसके मुताबिक हमें रोज सिर्फ एक कप ही दूध लेना है। इसके अलावा अंडा केवल एक या दो प्रति हफ्ते। इस आहार में मटर और दाल जैसी फलियों, सब्जियों, फल और ड्रायफ्रूट की मात्रा दोगुना करने की बात कही गई है। अनाज को पोषक तत्वों के लिहाज से कम स्वास्थ्यकर माना जाता है।
रिपोर्ट का हो रहा विरोध

हालांकि इस रिपोर्ट का विरोध भी हो रहा है, जिनमें मीट कंपनियां और बड़ी डेयरी कंपनियां शामिल हैं। मगर रिसर्चरों का कहना है कि इन कंपनियों को सच देखना चाहिए, अगर हम नहीं बदले तो बचेंगे नहीं।
मांसाहार कम करने के फायदे

भोजन में मांसाहार की मात्रा कम करने से हर साल 66 लाख 73 हजार करोड़ रुपये बचाया जा सकता है। जबकि इससे जो ग्रीन हाउस गैसें कम होगी उससे 33 लाख 36 हजार की और बचत हो जाएगी और इसका सबसे ज्यादा फायदा विकसित देशों को मिलेगा। अमेरिका के नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के नये रिसर्च के मुताबिक, अगर दुनिया में शाकाहारी को बढ़ावा मिले तो पृथ्वी को ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा ठंडा और ज्यादा दौलतमंद बनाया जा सकता है। साथ ही शाकाहार को बढ़ावा मिलने पर पूरी दुनिया में हर साल 50 लाख मौतें टाली जा सकती हैं।
2050 तक 1500 अरब डॉलर की कमी

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक अगर लोग मांस खाना कम कर दें तो 2050 तक सेहत और जलवायु संबंधी खर्च में 1500 अरब डॉलर की कमी लाई जा सकती है। इस रिपोर्ट के बाद सरकार ने वहां के मीट उद्योग पर नकेल कसना शुरू कर दिया है। डेनमार्क सरकार रेड मीट पर टैक्स लगाने वाली है तो चीन भी मीट की खपत को 50 फीसदी कम करना चाहता है।
फू़ड कंपनियां प्रोसेस्ड मीट

दरअसल ज्यादातर फू़ड कंपनियां प्रोसेस्ड मीट बेचती हैं। एंटीबायोटिक और प्रिजर्वेटिव से भरपूर ये मीट कैंसर जैसी बीमारियों को न्योता देता है। वहीं बूचड़खानों से निकलने वाला गंदे पानी की समस्या तो और बड़ी है। अमेरिका और कनाडा की कुछ नदियां तो मीट उद्योग के चलते बुरी तरह दूषित हो चुकी हैं। इतना ही नहीं मीट उद्योग से होने वाला कचरा भी बड़ी समस्या पैदा करता है। बीते 10 सालों में दुनिया ने बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और इबोला जैसी महामारियों का सामना किया है। ये सभी बीमारियां संक्रमित मीट से इंसान तक पहुंचीं थीं।
भारत में सबसे ज्यादा शाकाहारी

फ्रेंड्स ऑफ अर्थ नामक संस्था के अनुसार पूरी दुनिया में सिर्फ 50 करोड़ लोग ही ऐसे हैं जो पूरी तरह शाकाहारी है। यानी 740 करोड़ की आबादी वाली दुनिया में मात्र 50 करोड़ लोगों को आप अल्पसंख्यक भी कह सकते हैं। इस संस्था के अनुसार (2014) भारत में सबसे ज्यादा शाकाहारी रहते हैं। यानि भारत की कुल आबादी का 33% शाकाहारी है।
एक अनुमान के अनुसार जानवरों को पालने के लिए जो भोजन दिया जाता है वह अगर मनुष्य को दिया जाने लगे तो दोगुने लोगों का पेट भर सकता है। कुछ तथ्य –

6 लाख हेक्टेयर जंगल हर साल काट दिया जाता है
पूरी दुनिया में मीट उत्पादन के लिए काफी मात्रा में जानवरों को रखना और पालना पड़ता है। जिसके लिए बड़ी मात्रा में रहने और खाने की व्यवस्था की जाती है, जिससे दुनिया का एक काफी बड़ा हिस्सा (जो किसी देश से बड़ा हो सकता है) घेरने के साथ साथ 6 लाख हेक्टेयर जंगल हर साल काट दिया जाता है। 400 ग्राम मांस उत्पादन(खासकर बीफ में) करीब 40 किलो अपशिष्ट पदार्थ निकलते हैं, जो भूमि के जल को जहरीला बना देता है। अगर लोग शाकाहार को अपना ले तो जानवरों के पालने वाले 160 करोड हेक्टेयर जमीन मुक्त हो जाएगी, जो भारत के कुल क्षेत्रफल से भी 2 गुना जमीन है।
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भारत में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत मात्र 150 किलो प्रतिवर्ष

अमेरिका में हुई एक रिसर्च के मुताबिक अमेरिका में औसतन प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष अनाज की खपत 1100 किलो है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत मात्र 150 किलो प्रतिवर्ष है जो कि सामान्य है। लेकिन एक अमेरिकन और एक भारतीय के खाने में इतने बड़े अंतर की वजह है मांस। एक अमेरिकन के 1100 किलो अनाज के उपभोग में सीधे भोज्य अनाज की मात्रा 62 किलो ही होती है। बाकी का 88 किलो हिस्सा मांस का होता है। भारत के संदर्भ में कहें तो 150 किलो आहार में यह अनुपात 146.6 किलो अनाज और 3.4 किलो मांस होता है।
वेजीटेरियन सोसाइटी नामक एक संस्था के अनुसार एक अमेरिकी 1 साल में 122 किलो मीट पदार्थ खा जाता है। इसके अनुसार ही एक ब्रिटिश नागरिक अपने पूरे जीवन भर में 11000 जानवर खा जाते हैं, जिसमें 28 बत्तख, एक खरगोश, चार गाय भैंस जैसी बड़े जानवर, 1158 चिकन, 3593 सेल्फीस और 6182 मछलियां शामिल हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर मांसाहार छोड़ कर शाकाहारी को अपनाया जाय तो 2050 तक 120 अरब मुर्गे-मुर्गियों, डेढ़ अरब गायों, एक अरब भेड़ों और एक अरब सुअरों को न तो पैदा करने और न ही पालने की ज़रूरत पड़ेगी। आपको बता दें कि इतने बड़े पैमाने पर इन जानवरों के न रहने से धरती का करीब तीन करोड़ 30 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के बराबर इलाका खाली हो सकता है। ये इलाका अफ्रीका महाद्वीप के क्षेत्रफल के बराबर है। ये तब है जबकि इसमें चरागाहों की ज़मीन शामिल नहीं की गयी है। विशेषज्ञों के मुताबिक इतनी ज़मीन को अगर वनक्षेत्र में तब्दील कर दिया जाय तो ग्लोबन वार्मिंग में कमी लायी जा सकती है।

“मानव इतिहास के 2 लाख साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि हम प्रकृति और धरती के साथ हमारा तालमेल एकदम बिगड़ गया है। हम धरती के संसाधनों को संतुलित रखते हुए संपूर्ण आबादी को स्वास्थ आहार नहीं खिला सकते.”
“धरती पर जीवन बनाए रखने में कोई भी चीज मनुष्य को उतना फायदा नहीं पहुँचाएगी जितना कि शाकाहार का विकास।”

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