लखनऊ

यूपी की जेलों में 80 फीसदी से ज्यादा कैदी ऐसे जिनका दोष साबित नहीं

आरटीआई में ये खुलासा हुआ था कि यूपी की जेलों में निर्धारित अधिकतम क्षमता से 1.8 गुना ज्यादा कैदी बंद हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के 6 केन्द्रीय कारागारों की स्थिति के बारे में आरटीआई से जो जानकारी मिली वो भी चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक इनमें निर्धारित अधिकतम क्षमता से 1.23 गुना कैदी बंद हैं।

लखनऊNov 09, 2021 / 06:01 pm

Vivek Srivastava

नवविवाहिता की खुदकुशी मामले में पति पहुंचा जेल, महीनेभर पहले दोनों ने किया था लव मैरिज

हाल ही में फर्रुखाबाद जिले के फतेहगढ़ स्थित जिला जेल में एक बंदी की मौत पर भड़के बंदियों ने जमकर हंगामा किया। बंदियों ने जेलर, सुरक्षाकर्मियों पर भी हमला कर दिया और जेल में आग लगा दी। हंगामें में कई पुलिसकर्मी घायल हो गये। उत्तर प्रदेश की जेल में इस तरह के हंगामे या वारदात का ये कोई पहला मामला नहीं है। यहाँ की जेलों में अक्सर ऐसा होता रहता है।
अभी इसी वर्ष मई में चित्रकूट जेल में कुख्यात गैंगस्टर मुकीम काला और बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के करीबी मेराज की हत्या कर दी गयी थी। वहीं करीब तीन साल पहले बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या कर दी गयी थी। दरअसल सच तो ये है कि जेल अब आपराधिक गतिविधियों के संचालन का केन्द्र बन चुका है।
जेल अफसरों और कर्मचारियों की कमाई के लालच में पूरे सिस्टम को बर्बाद करके रख दिया है। बड़े अपराधियों के लिए जेल किसी ऐशगाह से कम नहीं है। खानपान से लेकर हर सामग्री अपराधियों को आसानी से मुहैया हो जाती थी। एक आरटीआई में ये खुलासा हुआ था कि यूपी की जेलों में निर्धारित अधिकतम क्षमता से 1.8 गुना ज्यादा कैदी बंद हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के 6 केन्द्रीय कारागारों की स्थिति के बारे में आरटीआई से जो जानकारी मिली वो भी चौंकाने वाली है। इसके मुताबिक इनमें निर्धारित अधिकतम क्षमता से 1.23 गुना कैदी बंद हैं।
आप ये जानकर हैरान रह जाएँगे कि यूपी की जेलों में 24,961 सिद्धदोष और 84658 विचाराधीन कैदी बंद हैं। यानि 80 फीसदी से ज्यादा कैदी ऐसे हैं जिनका दोष साबित नहीं हुआ है। जबकि सुप्रीम कोर्ट तक कई बार कह चुका है कि जमानत ही नियम होना चाहिए और जेल अपवाद। सच तो ये है कि कई कैदी सिर्फ इसलिये जेल में रहते हैं, क्योंकि उनके पास ज़मानत के लिये पैसे नहीं हैं।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 बिना किसी लाग-लपेट के कहता है कि निजी स्वतंत्रता हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। फिर भी सरकार और प्रशासन ने न जाने कैसा तंत्र खड़ा कर दिया है जो व्यक्ति का अपराध सिद्ध किए बिना उसे सलाखों के पीछे भेजने से जरा भी नहीं हिचकिचाता? ना जांच एजेंसियां पेशेवर तरीके से पुख्ता सबूत जुटाकर अपराध ही साबित कर पाती हैं, ना हमारी अदालतें पेशेवर जांच और पुख्ता सबूत के अभाव में व्यक्ति को जेल में ना भेजने का फैसला देने की हिम्मत कर पाती हैं।
17वीं शताब्दी में इंग्लैंड के कानूनविद विलियम ब्लैकस्टोन ने कहा था कि “एक भी मासूम को कष्ट नहीं होना चाहिए, भले ही 10 अपराधी बच कर क्यों ना निकल जाएं।” विलियम ब्लैकस्टोन के इस सिद्धांत को तकरीबन पूरी दुनिया की न्याय व्यवस्था ने स्वीकार किया है मगर हम इस सिद्धांत के आसपास भी नहीं हैं। एक सभ्य समाज में जेलों का मकसद अपराधियों को सुधार कर एक बेहतर इंसान बनाना होता है। सरकार को तत्काल जेलों को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।

Hindi News / Lucknow / यूपी की जेलों में 80 फीसदी से ज्यादा कैदी ऐसे जिनका दोष साबित नहीं

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.