बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को ट्वीट कर कहा कि अब वह किसी प्रकार का गठबंधन नहीं करेंगी और आने वाले सभी चुनाव अपने बूते ही लड़ेंगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि रविवार को पार्टी की बैठक के दौरान हुई बातें जो मीडिया में चल रही हैं, वे पूरी तरह से सही नहीं हैं।
25 साल बाद हुई थी दोस्ती
12 जनवरी 2019 को बसपा सुप्रीमो मायावती ने गेस्ट हाउस कांड को किनारे रखते हुए समाजवादी पार्टी से 25 साल बाद दोस्ती की थी। तब कहा गया था दोनों दलों का यह गठबंधन लंबा चलेगा। हालांकि, तब भी तो सियासी विश्लेषकों ने इस गठबंधन की उम्र पर संशय व्यक्त किया था। यह चिंता सच साबित हुई और महज छह महीने में ही माया और अखिलेश की राहें जुदा हो गई।
1993 में मिले थे मुलायम-कांशीराम
1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम एक हुए थे। एसपी-बीएसपी गठबंधन ने राम लहर के बावजूद दलित-मुस्लिम और पिछड़ों के समीकरण से सरकार बनायी थी। तब सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा को 10 और सपा को पांच सीट मिली। 2 जून 19995 को मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके साथ ही एसपी की सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड हुआ था। इसके बाद दोनों दल एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए। 25 साल बाद फिर दोस्ती हुई। जनवरी 2019 में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में एसपी-बीएसपी गठबंधन का ऐलान हुआ। लेकिन 23 मई को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही गठबंधन में दरार पड़ गयी।
माया के बोल
-समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना उनकी बड़ी भूल थी
-अखिलेश ने मुसलमानों को टिकट देने का विरोध किया था
-सपा प्रमुख ने कहा था मुस्लिमों को टिकट देने से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण होगा
-ताज कॉरिडोर केस में फंसाने के पीछे बीजेपी और मुलायम का हाथ
-बीएसपी अब आगे के सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले ही लड़ेगी
-बीएसपी प्रमुख के बारे में जो बातें मीडिया में फ्लैश हुई हैं वे गलत हैं
-सपा ने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया इसलिए दलितों, पिछड़ों के वोट नहीं मिले
-बसपा के प्रदेश अध्यक्ष को सपा विधायक दल के नेता ने हरवाया
-लोकसभा रिजल्ट आने के बाद अखिलेश ने मुझे कभी फोन नहीं किया
मायावती के बयान पर चुप हैं अखिलेश
लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद हर रोज एक के बाद एक संगीन आरोप लगाकर मायावती अखिलेश को घेर रही हैं। अब माया के निशाने पर मुलायम भी हैं। लेकिन अखिलेश और उनकी पार्टी चुप है। उपचुनावों में बसपा के अकेले उतरने की घोषणा के बाद सपा का बयान आया कि वह भी सभी उप चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी। लेकिन इसके बाद से मायावती लगातार सपा पर हमलावर हैं और अखिलेश चुप हैं। ऐसे में अखिलेश के सामने बड़ी चुनौती है कि आखिर वह अब किस आधार पर आगे की राजनीति करेंगे। अखिलेश इस समय गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। उनके पिता और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। शिवपाल ने अखिलेश के साथ आने से मना कर दिया है। ऊपर से मायावती ताबड़तोड़ हमले कर रही हैं। चौतरफा घिरे अखिलेश के लिए यह वक्त बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे यदि समय रहते मायावती को जवाब नहीं दे पाते हैं तो उन्हे नयी राजनीतिक जमीन तलाशनी होगी।
अखिलेश के सामने कई चुनौती
-मुसलमानों को सपा के साथ जोड़े रखने के लिए अखिलेश को उठाना होगा बड़ा कदम
-भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के साथ बसपा की चुनौतियों से पार पाना अखिलेश के लिए नहीं होगा आसान
-अखिलेश लंबे समय तक चुप रहे तो मुसलमानों में जाएगा गलत संदेश
-सपा को टूट से बचाए रखना भी अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती
-कांग्रेस और बसपा से गठबंधन का क्यों नहीं मिला सपा को फायदा जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं को बताना होगा
-मायावती की आवाज दलितों और पिछड़ों में मायने रखती है, वे जोर-जोर से बोल रही हैं अखिलेश को आरोपों से निपटना होगा
-मायावती की बातों को अखिलेश को चैलेंज करना होगा और उनकी बातों को ख़ारिज करना होगा। इसके बाद जमीन तलाशनी होगी।