scriptShaheed Captain Anshuman Singh: मैंने बहू को बेटी जैसा माना, लेकिन उसने हमें मेडल तक छूने नहीं दिया…शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता का दर्द | Martyr Captain Anshuman Singh parents left alone by bahu Smriti Singh | Patrika News
लखनऊ

Shaheed Captain Anshuman Singh: मैंने बहू को बेटी जैसा माना, लेकिन उसने हमें मेडल तक छूने नहीं दिया…शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता का दर्द

पिछले साल सियाचिन में आग लगने की घटना में शहीद हुए कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने भारतीय सेना के Next of Kin (NOK) नियमों में बदलाव की मांग की है। उनके बेटे की शहादत के बाद उनकी बहू स्मृति सिंह ने घर छोड़ दिया है, जिससे वे दुखी हैं।

लखनऊJul 13, 2024 / 01:10 pm

Ritesh Singh

Shaheed Captain Anshuman Singh

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Shaheed Captain Anshuman Singh: पिछले साल जुलाई में सियाचिन में आग लगने की घटना में शहीद हुए कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता, रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह, ने भारतीय सेना के NOK (Next of Kin) नियमों में बदलाव की मांग की है। उनका दावा है कि उनके बेटे की मौत के बाद उनकी बहू स्मृति सिंह ने उनका घर छोड़ दिया है और अब ज्यादातर लाभ उठा रही है।
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रवि प्रताप सिंह ने एक खास बातचीत के दौरान बात करते हुए कहा, “एनओके के लिए जो मापदंड तय किया गया है, वह सही नहीं है। मैंने इस बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी बात की है। अंशुमान की पत्नी अब हमारे साथ नहीं रहती हैं, शादी को अभी पांच महीने ही हुए थे और कोई बच्चा नहीं है। हमारे पास केवल हमारे बेटे की एक तस्वीर है जो दीवार पर एक माला के साथ टंगी हुई है।”
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NOK में बदलाव की मांग

रवि प्रताप सिंह ने कहा कि इसलिए वे चाहते हैं कि NOK की परिभाषा तय की जाए। यह तय किया जाए कि अगर शहीद की पत्नी परिवार में रहती है तो किस पर कितनी निर्भरता है। कैप्टन सिंह की मां ने कहा कि वे चाहती हैं कि सरकार NOK नियमों पर फिर से विचार करें ताकि अन्य माता-पिता को परेशानी ना उठानी पड़े।
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जानकारी के मुताबिक शहीद अंशुमान सिंह की पत्नी स्मृति सरकार की तरफ से दिए गए कीर्ति चक्र को लेकर अपने घर गुरदासपुर चली गई हैं। मेडल के साथ-साथ दस्तावेजों में दर्ज स्थायी पते को भी बदलवाकर उन्होंने अपने घर गुरदासपुर का करवा दिया है।

NOK नियम क्या होते हैं?

NOK का मतलब होता है अगला-किस्म का व्यक्ति (Next of Kin)। यह शब्द किसी व्यक्ति के सबसे करीबी रिश्तेदार या कानूनी प्रतिनिधि के लिए इस्तेमाल होता है। सेना के नियमों के मुताबिक, अगर सेना में किसी व्यक्ति के साथ कुछ हो जाता है, तो एक खास रकम (एक्स-ग्रेसिया) उसके NOK को दी जाती है। जब कोई कैडेट या अधिकारी सेना में शामिल होता है, तो उसके माता-पिता या अभिभावकों का नाम NOK के तौर पर दर्ज किया जाता है। लेकिन जब वह कैडेट या अधिकारी शादी कर लेता है, तो सेना के नियमों के तहत, उसके जीवनसाथी का नाम उसके माता-पिता की जगह NOK के रूप में दर्ज हो जाता है।
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कैप्टन अंशुमान सिंह की बहादुरी

कैप्टन सिंह सियाचिन ग्लेशियर इलाके में 26 पंजाब रेजिमेंट में एक मेडिकल ऑफिसर के तौर पर तैनात थे। 19 जुलाई 2023 को सुबह करीब 3 बजे भारतीय सेना के गोला-बारूद डिपो में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। कैप्टन सिंह ने देखा कि एक फाइबर ग्लास का झोपड़ा आग की लपटों में घिर गया है और उन्होंने तुरंत अंदर फंसे लोगों को बचाने के लिए काम किया। उन्होंने चार-पांच लोगों को सफलतापूर्वक बचा लिया, लेकिन आग जल्दी ही पास के एक कमरे तक फैल गई। कैप्टन सिंह वापस धधकती इमारत में चले गये। अपने प्रयासों के बावजूद वे बच नहीं पाए।
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शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने NOK नियमों में बदलाव की मांग की है ताकि अन्य माता-पिता को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। उनकी यह मांग रक्षा मंत्रालय और सेना के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए।

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