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लखनऊ के क्षेत्र में दिखे आम के बौर मलिहाबाद,काकोरी माल, मोहनलालगंज की 70 फीसदी आबादी आम पर निर्भर है। सर्दी के बाद वसंत ऋतु के आने के साथ आम में बौर लग गए हैं। जिस तरह से पेड़ों पर आम का बौर आया है, उससे संभावना जताई जा रही है कि इस बार फसल ठीक-ठाक होगी।
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कई साल बाद दिखे आम के बौर काफी अरसे बाद इस बार आम के पेड़ में बौर आए हैं। कई सालों बाद पछुआ बयार के झोंके से बागवानों में पूरी उम्मीद जगा दी है। मौसम का मिजाज इसी तरह रहा, तो आम इस बार लोगों की पहुंच में रहेगा। आम के बौरों को कीटों व रोगों से बचाने के लिए बागबानों ने दवाओं का छिड़काव कराना शुरू कर दिया है। बागवानों के मुताबिक, काफी अरसे बाद आम के लिए अनुकूल मौसम बन रहा है। जिसके चलते बीते सालों की शून्यता मुनाफे में तब्दील हो सकती है।
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3 साल के लिए खरीदते है बाग राजेन्द्र प्रसाद का कहना है कि जनवरी के दूसरे सप्ताह में बौर आने से, मौसम बहुत अच्छा है, जो आम के पैदावार के लिए बहुत ही फायदेमंद है। यदि समय पर आम की खेती वाले किसानों को दवा मिल जाए और फसल पैदा होने के बाद आम समय से मंडियों में पहुंच जाए, तो एक किसान के लिए कितना अच्छा होगा यह समझना आसान नहीं। बागों को खरीद कर देखभाल करने वाले रमेश चंद्र और अरविंद कुमार का कहना है कि वे आम बागान के मालिकों से बाग तीन साल के लिए खरीदते हैं।
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परिवारों के साथ बाग में ही रहते हैं किसान एक बाग की कीमत 50,000 से छह लाख तक होती है। बाग खरीदने के बाद वे बाग में ही परिवार के साथ रहकर, पेड़ों का थाला बना, उसकी गुडाई और सिचाई करते हैं। ताकि आम की फसल बेहतर हो सकें। आम में बौर आते ही उसे फंगस और हापरकीट से बचाव के लिए एकालक्ष्य, क्लोरापासरीफास, औपेलाफास, इमिडाक्लोपिड जैसी दवाओं का छिड़काव करते हैं।