भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं 56 लाख साधु बात 10 फरवरी 1921 की है। काशी विद्यापीठ के शिलान्यास के लिए महात्मा गांधी वे बनारस आए थे। शिलान्यास के बाद गांधी जी ट्रेन से अयोध्या पहुंचे थे। देर शाम फ़ैज़ाबाद की सभा को संबोधित कर वे 11 फरवरी की सुबह अयोध्या के सरयू घाट पर पंडित चंदीराम की अध्यक्षता में हो रही साधुओं की सभा में पहुंचे। साधुओं सभा को सम्बोधित करते हुए गांधी जी ने कहा, कहा जाता है कि भारतवर्ष में 56 लाख साधु हैं। ये 56 लाख बलिदान के लिए तैयार हो जाएं तो मुझे विश्वास है कि अपने तप तथा प्रार्थना से भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं।
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महात्मा गांधी की अयोध्या की दूसरी यात्रा वर्ष 1929 हुई। इस यात्रा में वे अपने हरिजन फंड के लिए धन जुटाने रामनगरी में आए थे। मोतीबाग में हुई सभा में उन्हें उस उक्त फंड के लिए चांदी की एक अंगूठी प्राप्त हुई तो वे वहीं उसकी नीलामी कराने लगे। गांधी जी ने कहा था कि, जो इस अंगूठी की सबसे ऊंची नीलामी लगाएगा, उसे वे खुद अपने हाथों से उसको अंगूठी पहनाएंगे। एक सज्जन ने 50 रुपए की बोली लगाई और नीलामी उन्हीं के नाम पर ख़त्म हो गई। तब बापू ने उन्हें अपने हाथ से अंगूठी पहनाई, लेकिन जब उन्होंने सौ का नोट दिया तो बापू ने बाकी वापस नहीं किया, यह कहकर कि वे दान का धन वापस नहीं करते।
यह भी पढ़े – इलाहाबाद हाईकोर्ट दशहरा के लिए नौ अक्तूबर तक रहेगा बंद दोनों यात्राएं के सुबूत हैं उपलब्ध महात्मा गांधी की अयोध्या यात्रा का गहन अध्ययन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह बताते हैं कि, बापू ने यहां भी सामाजिक परिवर्तन और आजादी की अलख जगाई थी। यह दोनों यात्राएं अनेक दस्तावेजों और राजकीय संग्रहालय में उपलब्ध हैं।
सरयू तट पर गांधी ज्ञानमंदिर की स्थापना देश के पहले राष्ट्रपति रहे राजेंद्र प्रसाद ने 1948 में बापू की अस्थियां अयोध्या में सरयू में प्रवाहित किया। सरयू तट पर गांधी ज्ञानमंदिर की स्थापना की गई। यहां पर प्रतिवर्ष बापू की पुण्यतिथि पर 15 दिन का सर्वोदय पखवारा मनाया जाता है।