मायावती का अपने जन्मदिन पर ऐलान, यूपी-उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी बसपा चुनौतियां हैं कईं :- बसपा संस्थापक कांशीराम के सानिध्य में रहकर मायावती ने सियासत का ककहरा सीखा था और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनीं। मायावती वर्ष 1977 में कांशीराम के कहने पर राजनीति में आई थीं। वर्ष 1995 में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं और 15 दिसंबर, 2001 को कांशीराम ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था। और वर्ष 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहीं। पर वर्ष 2012 से बसपा लगातार नीचे जा रही है। मायावती के सामने बसपा को एक बार फिर से सत्ता तक पहुंचाने के साथ बहुजन समाज मूवमेंट को आगे ले जाना एक बड़ी चुनौती है। ऊपर से बसपा को सही हाथ में सौंपने के लिए सही वारिस को ढूंढ़ने का है।
लिस्ट में है आनंद का नाम :- वर्ष 2018 में अचानक मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर भाई आनंद का नाम उछाला। वक्त को अंबेडकर जयंती के मौके पर मायावती का अपने भाई आनंद कुमार को बीएसपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाना। पर कई शर्तें थी जिस वजह से ठीक छह महीने बाद मायावती ने आनंद को बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटाया दिया। पर आज भी आनंद मायावती की राजनीति विरासत संभालने की लिस्ट में शामिल हैं।
बुआ सीखा रहीं हैं भतीजे को राजनीति के दांव पेंच:- आनंद का नाम हमेशा से चर्चा में रहा है। आकाश मायावती के भाई आनंद के बड़े बेटे हैं। पढ़े लिखे हैं।लंदन की एक यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में पोस्टग्रेजुएट हैं। मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर आकाश को देखा जा रहा है। और आकाश भी अपनी बुआ मायावती से राजनीति के दांव पेच सीख रहे हैं। वैसे माना जा रहा है कि अभी मायावती की राजनीति 10 साल तक बरकरार रहेगी। इसलिए मायावती अपने भतीजे आकाश को अपने साथ रखकर सियासत के हुनर सिखा रही हैं।