उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पांच फरवरी को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या के सोहावल तहसील के रौनाही थाने से कुछ दूरी धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन दी है। इस जमीन को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कबूल किया है। यह ज़मीन लखनऊ-अयोध्या हाई-वे पर अयोध्या से क़रीब 20 किलोमीटर दूर है।
मस्जिद सहित कई जनहित के होंगे काम :- अयोध्या के रौनाही में पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद का निर्माण इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन की देखरेख में होगा। इस पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद के अलावा चैरिटेबल अस्पताल, भारतीय तथा इस्लामिक सभ्यता के अध्ययन के लिए रिसर्च केंद्र व पब्लिक लाइब्रेरी बनाने की योजना है। सुन्नी वक्फ बोर्ड की आज की बैठक में इन सब मुद्दों को फाइनल कर इस पर से परदा हटा दिया जाएगा। ट्रस्ट के गठन की घोषणा के बाद जमीन लेने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
अध्यक्ष पद के लिए जुफर फारूकी पर सहमति! :- ट्रस्ट में अध्यक्ष सहित करीब 10 सदस्य रहेंगे। इनमें कानून के जानकार के अलावा सरकार का एक प्रतिनिधि भी होगा। सूत्रों के मुताबिक ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी का नाम तय है। ट्रस्ट में बोर्ड के चेयरमैन के भरोसेमंद सदस्यों को तरजीह दी गई है। इनमें मो. जुनीद सिद्दीकी, विधायक अबरार अहमद, अदनान फर्रूख शाह, जुनैद सिद्दीकी और सैयद अहमद अली को फारूकी का भरोसेमंद माना जाता है। ट्रस्ट में बोर्ड से बाहर के सामाजिक कार्यकर्ता व स्कॉलर को भी शामिल किया गया है। बाबरी मस्जिद विवाद को सुलह समझौते से हल करने के पैरोकार रहे राजधानी लखनऊ के एक स्कॉलर का भी ट्रस्ट में शामिल होना तय है।
जनहितैषी बिजनेसमैन किए जाएंगे शामिल :- पांच एकड़ जमीन पर मस्जिद व अन्य संस्थान के निर्माण के लिए आर्थिक संसाधन की व्यवस्था करना ट्रस्ट की जिम्मेदारी होगी। जानकारों की माने तो ट्रस्ट के गठन का ऐलान होने के बाद इसके विस्तार में देश की बड़ी सामाजिक हस्तियों के साथ ही जनहितैषी बिजनेसमैन को भी शामिल किया जाएगा।
कोर्ट की अवमानना होगा : फारूकी फरवरी के अंतिम सप्ताह में दिए एक बयान में बोर्ड के अध्यक्ष जुफर फारूकी ने साफ किया कि उनके पास कभी इसको खारिज करने की छूट नहीं थी। हम पहले ही कह चुके थे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जाएगा। फारूकी ने कहाकि, ‘9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था कि राज्य सरकार हमें जमीन आवंटित करे और हमें इस पर मस्जिद और उससे जुड़ी दूसरी चीजें बनाने की छूट मिले। हमारे पास जमीन को स्वीकार न करने की छूट नहीं थी क्योंकि ऐसा करना कोर्ट की अवमानना होगा।’