उप्र में किसान बदहाल हैं। खासकर गन्ना किसान। तीन सत्र गुजर गए पर सरकार ने गन्ने की कीमत में एक रुपए की बढ़ोत्तरी नहीं की। ऊपर से चीनी मिलों पर गन्ने का बकाया दिलाने में भी कोई खास प्रगति नहीं दिखी। उधर, महंगाई ने गन्ने की बुवाई की लागत बढ़ा दी है। किसान परेशान हैं। नाराज किसानों को मनाने के लिए और उनकी समस्याओं को जानने के लिए भाजपा किसान मोर्चा ने यूपी की 90 विधानसभा क्षेत्रों में किसानों के दरवाजे खटखटाए। खाट पर बैठ मन की बात सुनी। जाहिर है रिपोर्ट अच्छी नहीं थी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस गंभीरता को समझा और एक बार फिर किसानों पर तोहफों की बरसात हो गई। अभी यह वादा है। ऐलान को अमलीजामा पहनाया जाए तो बात बने।
चुनावी साल किसानों का मुंह मीठा करने की कोशिशें हर बार होती रही हैं। योगी ने मिठास के लिए गुड़ की जो डलियां डाली हैं उसमें महत्वपूर्ण है बहुप्रतीक्षित गन्ना मूल्य बढ़ाने का वादा। पिछला गन्ना बकाया भुगतान, बिजली बिल पर ब्याज में छूट और पराली की वजह से जिन किसानों पर मुकदमे दर्ज हुए हैं उन्हें वापस लेना। यह सब हो जाए तो वाकई किसान खुश होगा। उसके रिसते घावों पर कुछ मरहम लगेगा।
देश की कुल 520 चीनी मिलों से 119 यूपी में हैं। सर्वाधिक गन्ना उत्पादन यूपी में ही होता है। कोरोना काल में भी यूपी, देश में चीनी उत्पादन में नंबर वन रहा। उप्र में 45.44 लाख से अधिक गन्ना आपूर्तिकर्ता किसान हैं। और लगभग 67 लाख किसान गन्ने की खेती से जुड़े हैं। गन्ना सेक्टर का यूपी की जीडीपी में 8.45 प्रतिशत एवं कृषि क्षेत्र की जीडीपी में 20.18 प्रतिशत का योगदान है। वैसे भी गन्ना राजनीतिक रूप से यह बेहद संवेदनशील फसल है। यूपी के लगभग 50 लाख परिवारों के दो करोड़ से अधिक वोटर गन्ने से होने वाली कमाई पर ही आश्रित हैं। गन्ना किसान सूबे की सरकार बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि विपक्षी दल भी गन्ना कीमतें न बढ़ाने को मुद्दा बनाए हुए हैं। इसलिए सरकार को गन्ना किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए।