लखनऊ

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 2021 पर विशेष : प्रधान के नाम का शोर बहुत है, लेकिन, कोरोना नियंत्रण में भूमिका नगण्य

National Panchayati Raj Day 2021 – ग्राम पंचायतों को भी मिलना चाहिए निगमों की तरह अधिकार- आकस्मिक कामों और आपदा से निपटने के लिए हो फंड

लखनऊApr 24, 2021 / 12:21 pm

Mahendra Pratap

संजय कुमार श्रीवास्तव
पत्रिका न्यूज नेटवर्क

लखनऊ. National Panchayati Raj Day 2021 : कोरोना गांव-गांव तक पहुंच गया है। शहरों में तो नगर निकाय और पार्षद कोविड-19 से निपटने में जुटे हैं। लेकिन, गांवों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस है। कागजों में पंचायती दिवस मन जाएगा। लेकिन इस पर कोई चर्चा नहीं होगी आखिर इस महामारी से लड़ने के लिए पंचायतों को अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए।
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राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम 1992 के पारित होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह अधिनियम 24 अप्रैल 1993 से पूरे देश में लागू हुआ। पंचायती राज व्यवस्था की देखरेख के लिए 27 मई 2004 को केंद्र में पंचायती राज मंत्रालय को एक अलग मंत्रालय का बनाया गया। जबकि राज्यो में तो आजादी के समय से पंचायती राज विभाग हर राज्य में काम कर रहा है।
जिले का प्रथम नागरिक कौन : उत्तर प्रदेश में कुल 58,189 ग्राम पंचायतें हैं। इस समय उप्र में ग्राम पंचायत चुनाव 2021 के लिए वोटिंग चल रही है। नए ग्राम प्रधान 7,32,563 ग्राम पंचायत सदस्य,75,855 बीडीसी सदस्य और 826 ब्लाक प्रमुख चुने जाएंगे। 2 मई को परिणाम आएगा।्र यूपी में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष भी चुने जाते हैं। इन्हें जिले का प्रथम नागरिक कहा जाता है। त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में इसी तरह ग्राम प्रधान अपनी ग्रामसभा का पहला नागरिक होता है। यह सभी मिलकर गांव के विकास लिए उत्तरदायी हैं।
समितियां तो हैं पर विकास सिर्फ कागजों पर : उत्तर प्रदेश पंचायती राज एक्ट के अनुसार विकास की कार्ययोजना तैयार करने के लिए हर ग्राम पंचायत में 6 समितियां गठित की जाती हैं। समिति में प्रशासनिक कार्य समिति, नियोजन कार्य समिति, निर्माण कार्य समिति, जल प्रबंधन समिति, चिकित्सा स्वास्थ्य समिति, शिक्षा समिति हैं। लेकिन वास्तव में यह सभी कार्य ग्राम प्रधान ही करता है। ग्राम प्रधान, ग्रामसभा और ग्राम पंचायत की बैठक बुलाता है और इसकी कार्यवाही को नियंत्रित करता है। लेकिन, विकास सिर्फ कागज पर हुआ है जमीन पर कुछ नहीं।
बजट लाखों का, लेकिन काम चलताऊ : ग्रामसभा का बजट गांव की आबादी और क्षेत्रफल के आधार पर तय होता है। पंचायती राज व्यवस्था में छोटे गांव के लिए एक साल में दो-तीन लाख रुपए का बजट, और बड़े गांवों के लिए हर साल 10 से 15 लाख तक का बजट आता है। इस तरह औसतन हर पंचायत को 7 से 10 लाख रुपए मिलते हैं। कुछ जिलों की पंचायतों को एक-एक करोड़ तक मिलता है। लेकिन कोविड काल में पंचायतों के पास कोई अधिकार नहीं है। यहां तक कि अपनी ग्रामसभा में चूने के छिड़काव तक का पैसा उनके पास नहीं होता। ग्राम विकास अधिकारी और ग्राम पंचायत अधिकारी की अनुमति के बिना वह एक पैसा भी खर्च नहीं कर सकते।
क्या होना चाहिए :-

-पंचायतों को प्रशासनिक अधिकार मिले
-कोविड कोर ग्रुप में ग्राम प्रधान को भी शामिल किया जाए
-आकस्मिक व्यय का भी अधिकार मिलना चाहिए
-संकट काल में आय बढ़ाने का हो उपाय
-खेती-किसानी में भी मनरेगा को शामिल करने का मिले हक।

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