ये भी पढ़ें- रेलवे ने निरस्त कर दीं ये 19 ट्रेनें और इनके रूट में किया बदलाव कोर्ट ने कहा पब्लिसिटी स्टंट है यह सिर्फ- हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि यह याचिका ‘पब्लिसिटी स्टंट’ के लिए दायर की गई थी। इससे कोर्ट का समय बर्बाद हुआ है। जस्टिस डीके अरोड़ा और जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने याचिका को सस्ती लोकप्रियता के लिए उठाया गया कदम करार दिया व इसे खारिज कर दिया। इसी के साथ ही कोर्ट ने ट्रस्ट के ऊपर पांच लाख का जुर्माना भी लगाया। ऐसा न करने पर बेंच ने फ़ैजाबाद के जिलाधिकारी को राशि वसूलने के सख्त निर्देश दिए हैं।
2010 के फैसले का हवाला देते हुए दायर की गई थी याचिका- दरअसल यह याचिका हाई कोर्ट के 2010 के उस आदेश का हवाला देते हुए दाखिल की गई थी, जिसमें कहा गया था कि विवादित भूमि पर मुसलमानों का भी एक तिहाई हिस्सा है। 2010 में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था, जिसमें राम लला विराजमान वाला हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया। वहीं दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।
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रायबरेली की पंजीकृत अल रहमान ट्रस्ट इस्लाम को बढ़ावा देने और मुस्लमानों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है। उनकी ओर से ही यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि विवादित स्थल पर मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए।
रायबरेली की पंजीकृत अल रहमान ट्रस्ट इस्लाम को बढ़ावा देने और मुस्लमानों की शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है। उनकी ओर से ही यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि विवादित स्थल पर मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए।