लखनऊ खंडपीठ में जब हुधवार को सुनवाई हुई थी तब याचिका कर्चाओं की ओर से दलील दी गई थी। कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है।इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
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2017 में किए सर्वे का आरक्षण में आधार माना जाए राज्य सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश किया हलफनामे में कहा गया है कि 2017 में ओबीसी वर्ग का सर्वे कराया गया था। उसी सर्वे को आरक्षण का आधार मानकर ट्रिपल टेस्ट माना जाए। इसके आगे कहा गया है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
सरकार ने तिहरे परीक्षण की औपचारिकता नहीं पूरी की जनहित याचिकाओं ने निकाय चुनाव में आरक्षण पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया।